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छातापुर : रात में जेसीबी से रैयतों के फसल लगी जमीन में काटी मिट्टी, पेड़ भी उखाड़े, आवेदन देने के 24 घंटे बाद भी कार्रवाई नहीं

  • आधा दर्जन रैयतों ने बीडीओ, सीओ, पीओ व एसएचओ को आवेदन देकर प्रखंड प्रमुख पुत्र पर लगाया है आरोप 




सुपौल। छातापुर प्रखंड के राजेश्वरी पूर्वी पंचायत में रविवार की देर रात जेसीबी चलाकर रैयतों की फसल को क्षति पहुंचाकर काटी गई मिट्टी मामले में लिखित शिकायत के बावजूद मंगलवार तक किसी ने झांकने की जहमत नहीं उठाई है। पहले योजना कार्य निपटाकर फिर बोर्ड लगाकर स्थल से फारिग हो जाने के पू्र्व से चल रहे रिवाज के बीच गृह पंचायत राजेश्वरी पूर्वी में प्रखंड प्रमुख पुत्र अजय सरदार द्वारा योजना क्रियान्वयन के नाम पर की गई कथित दबंगई से मेलफांस की बू आ रही है। ऊपर से आलम यह कि आधा दर्जन पीड़ित रैयतों द्वारा लिखित आवेदन बीडीओ, सीओ, पीओ व थानाध्यक्ष को देने के बावजूद 24 घंटे बाद भी किसी ने स्थलीय जायजा लेना मुनासिब नहीं समझा। ये मिलीभगत नहीं तो और क्या है? इसमें कतई संदेह नहीं कि जिन-जिनको आवेदन देकर मामले से अवगत कराया गया उनमें एकाध व्यस्त भी रहे होंगे, लेकिन ऐसा तो हो नहीं सकता कि सभी व्यस्त ही थे और ऐसा था तो उक्त कार्य भी आवश्यकता की श्रेणी में ही आता है। 

दूसरी ओर जनहित के लिए निर्माणाधीन लंबी चौड़ी कच्ची सड़क का निर्माण कार्य कोई व्यक्तिगत खर्च से तो करवा नहीं सकता तो फिर किसने पर्दे के पीछे से जेसीबी का यह खेल रचा जो अब सामने नहीं आ रहे! मामला दिलचस्प है कि रात के 11 बजे से दो बजे तक जेसीबी से फसल लगे खेतों में मिट्टी काटी गई, जिसमें कई हरे भरे पेड़ भी धाराशायी हुए। बावजूद 24 घंटे बाद भी स्थलीय पड़ताल नहीं हुई। ऐसा क्या इसलिए हुआ कि कृत्य का आरोपी प्रखंड प्रमुख का पुत्र है। इनकी जगह कोई आम आदमी ने इस घटना को अंजाम दिया होता तो क्या प्रशासन इसी भूमिका में होता।

 नज़रिया साफ है कि अब असरो रसूख के मेलफांस में मामले को रफा-दफा करने की कसरत चल रही है। सूत्रों की मानें तो प्रखंड स्तर पर क्रियान्वित विकास की योजनाओं में कमीशनखोरी का बड़ा खेल चल रहा है। बताया जाता है कि इस रस्म में कई किरदार शामिल हैं। किसी को आठ प्रतिशत चाहिए तो किसी-किसी को चार, तकनीकी ज्ञान लेने में पांच प्रतिशत का हिसाब लगाया जाता है तो जनता के ठेकेदार को पांच पर्सेंट बंधी है। अब बची खुची कोर कसर तीन पर्सेंट ले जीएसटी निकाल लेता है। ऐसे में स्थल पर किसी भी योजना की हकीकत क्या हो सकती है इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है, वह भी तब जबकि प्राक्कलन बनाने वालों को निर्माण सामग्रियों का सरकारी दर भलीभांति पता है।

 सरकार द्वारा निर्धारित दर और बाजार भाव के अंतर के बीच भी संवेदक या अभिकर्ता ही पिसते हैं और कमीशन का बोझ भी इन्हीं के सिर होता है। इसका हल्का सा तोड़ निकाला गया है जिसे रीच स्टिमेट बोलते हैं। जानकारों की मानें तो यही प्रखंड स्तर पर क्रियान्वित या निष्पादित योजनाओं की हकीकत है जिससे बमुश्किल 50 प्रतिशत राशि से भी काम नहीं हो पाता और योजनाएं पांच वर्ष की अवधि पूरा किए बिना ही दम तोड़ देती है। जनप्रतिनिधियों और पदधारियों के गठजोड़ का यह ऐसा नमूना है जो राजेश्वरी पूर्वी में सामने आ रहा है।

 पीड़ित रैयतों द्वारा दिए आवेदन के बाबत पूछने पर राजेश्वरी थानाध्यक्ष संतोष कुमार ने बताया कि रैयत जब आवेदन देने आए थे उस समय मैं मीटिंग में था। चुंकि आवेदन जमीन से जुड़ा है इसलिए आवेदन देखकर प्रावधान के अनुसार यथोचित कार्रवाई की जाएगी।



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