सुपौल। सदर अस्पताल स्थित सभा कक्ष में सोमवार को सिविल सर्जन डॉ. ललन ठाकुर की अध्यक्षता में गर्भावधि मधुमेह (GDM) विषय पर एक महत्वपूर्ण प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें जिले के सभी प्रखंडों से आए चिकित्सा पदाधिकारी, लैब टेक्नीशियन (LT), जीएनएम और एएनएम कर्मियों ने सक्रिय रूप से हिस्सा लिया।
प्रशिक्षण की शुरुआत गर्भावस्था के दौरान मधुमेह की पहचान और उसके दुष्प्रभावों पर विस्तृत चर्चा के साथ हुई। विशेषज्ञों ने बताया कि गर्भकाल में पहली बार रक्त शुगर का स्तर बढ़ने पर जीडीएम का पता चलता है, इसलिए समय पर स्क्रीनिंग अनिवार्य है। प्रतिभागियों को स्क्रीनिंग से पहले गर्भवती महिलाओं को दिए जाने वाले संदेश, जोखिम कारक, जांच की अनिवार्यता तथा सही प्रक्रियाओं की जानकारी दी गई।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने स्पष्ट किया कि जिन गर्भवती महिलाओं में रक्त शर्करा 140 मिग्रा/डीएल या उससे अधिक पाए जाते हैं, वे संतुलित आहार, उचित पोषण और नियमित व्यायाम द्वारा शुगर नियंत्रण में रख सकती हैं। वहीं जीवनशैली में सुधार के बावजूद यदि शुगर 120 मिग्रा/डीएल से ऊपर रहती है, तो मेटफॉर्मिन या इंसुलिन उपचार की आवश्यकता पड़ सकती है। प्रसवोत्तर देखभाल तथा अस्पताल से छुट्टी के समय जीडीएम माताओं को दिए जाने वाले आवश्यक संदेशों पर भी विस्तार से चर्चा की गई।
कार्यक्रम का संचालन टीओटी प्रशिक्षक चंदन कुमार ठाकुर ने किया। प्रशिक्षण में डीएस नूतन वर्मा, डीपीसी सह डीपीएम बालकृष्ण चौधरी, सीबीसीई आशुतोष राज, पिरामल फाउंडेशन के प्रतिनिधि प्रतीक सक्सेना सहित जिले के सभी प्रखंडों के चिकित्सा कर्मी मौजूद रहे।
सिविल सर्जन डॉ. ललन ठाकुर ने कहा कि इस प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य जिले में जीडीएम की समय पर पहचान सुनिश्चित कर मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य को सुरक्षित रखना है। उन्होंने स्वास्थ्यकर्मियों से आग्रह किया कि इस ज्ञान को समुदाय स्तर तक पहुँचाकर अधिक से अधिक गर्भवती महिलाओं को लाभान्वित करें।

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