सुपौल। जिले के छातापुर अंचल कार्यालय की कार्य संस्कृति मनमानेपन की शिकार है। अव्वल तो राजस्व कचहरी से लेकर कार्यालय तक में बिना सुविधा शुल्क के वाजिब कार्य नहीं होता। ऊपर से आलम है कि परिचारी से लेकर गार्ड तक कर्मचारी के साथ मिलकर बीच के लोग बने हैं। वैसे भी पूर्व से कार्यालय लगायत राजस्व कचहरी में निजी मुंशियों की भरमार है जिनसे पार पा जाना रैयतों के बस की बात नहीं रही है। हर एक राजस्वकर्मी के अपने-अपने कारिंदे हैं जो सरेआम राजस्व कर्मचारियों के साथ बैठकर अभिलेखों के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। जानकार बताते हैं कि निजी हाथों से निपटाए जा रहे कार्य के कारण कई जरूरी अभिलेखों के कागजात तक फटकर गायब हो चुके हैं। वहीं कई अभिलेखों को 2008 की कुसहा त्रासदी में बर्बाद बताकर पल्ला झाड़ने का रिवाज वर्षों से चला आ रहा है। हालांकि बाद में यदि संपर्क अच्छी है तो सुविधा में हेरफेर हो जाता है और कागजों की धूल से हालात बाहर आ निकलते हैं। इन तथाकथित मुंशियों की जब कोई बड़ी हरकत निकलकर बाहर आती है तो चमक धमक दिखाकर मामले की लीपापोती हो जाती है। हाल के दिनों में ऐसे मुंशियों को संजीवनी मिल गई है। राजस्व कचहरी पर ऐसे तथाकथित मुंशियों की भीड़ जब बढ़ जाती है तो उनके रहबर राजस्वकर्मी उन्हें अपने साथ पंचायत में लेकर चले जाते हैं जहां उन्हें कोई रोकने टोकने वाला नहीं होता। लेकिन हर जगह की एक कॉमन कहानी होती है कि रैयतों का शोषण बदस्तूर जारी रहता है। हालांकि नवपदस्थापित अंचलाधिकारी के आने के बाद कार्यालय में निजी तौर पर वर्षों से कार्यरत चेहरों पर हद तक लगाम तो लगी है लेकिन राजस्व कर्मचारियों के साथ निजी तौर पर काम करने वाले तथाकथित मुंशियों की कारगुजारियों पर नकेल कसना अभी शेष है। दो दिन पूर्व पूछने पर अंचलाधिकारी राकेश कुमार ने कहा था कि मामला संज्ञान में आया है वे इसको देख रहे हैं।
छातापुर : मनमानेपन की शिकार है अंचल कार्यालय की कार्य संस्कृति, निजी मुंशी बने हैं कारिंदे
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