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नरेंद्र मोदी सरकार के द्वारा लद्दाखी आंदोलनकारियों पर दमन की निंदा


 

पटना। लोकतांत्रिक जन पहल बिहार, जाने-माने पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक और उनके साथियों के द्वारा लद्दाख की जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों को लेकर और नरेंद्र मोदी सरकार के पुलिसिया रवैए के खिलाफ अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठने का समर्थन करते हुए लद्दाख की जनता के आंदोलन के प्रति अपनी एकजुटता प्रकट करता है और नरेंद्र मोदी सरकार के तानाशाही रवैए की कठोर निंदा करता है।

लोकतांत्रिक जन पहल का मानना है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक बार फिर साबित किया है कि लोकतंत्र उनके लिए केवल चुनावी हथकंडा अपना कर सत्ता हथियाने के अलावा कुछ नहीं है। यही कारण है कि सोनम वांगचुक और उनके साथियों के द्वारा अपनी मांगों के लेकर केंद्र सरकार से वार्ता करने की मांग को भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ठुकरा रहे हैं। दरअसल झूठ और फरेब ही मोदी शासन का मुख्य आधार है।

उल्लेखनीय है कि जाने-माने पर्यावरण सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक गत एक सितंबर से अपने लगभग 150 सहकर्मी साथियों के साथ हिमालयी क्षेत्रों में जारी सरकार की विनाशकारी नीतियों के खिलाफ और लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग के साथ- साथ वहां के आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत लाने, बेहतर लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व के लिए संसद, राज्यसभा एवं विधानसभा की सीट बढ़ाने तथा स्थानीय लोगों को रोजगार की गारंटी आदि मांगों को लेकर लद्दाख की राजधानी लेह से उबड़-खाबड़ व ऊंची-नींची पहाड़ियों में लगभग एक हजार किलोमीटर पैदल मार्च करते हुए दो अक्टूबर को दिल्ली स्थित गांधी के समाधी स्थल राजघाट आने वाले थे।

 करीब एक माह के पैदल मार्च के बाद जब वे लोग 30 सितंबर को दिल्ली की सीमा पर पहुंचे तो उन्हें और उनके साथियों को दिल्ली- हरियाणा सिंघु सीमा पर केन्द्र सरकार की पुलिस ने सभी को हिरासत में ले लिया और दिल्ली स्थित लद्दाख भवन में अमानवीय स्थिति में रहने को मजबूर किया । 

अन्यायपूर्ण और असंवैधानिक तरीके से हिरासत में लिए जाने के खिलाफ श्री सोनम वांगचुक और उनके कुछ साथीगण अनशन पर चले गए । दो अक्टूबर को हिरासत में रहते हुए दिल्ली पुलिस के द्वारा उनलोगों को अलग-अलग समूहों में सुरक्षा घेरे में राजघाट ले जाया गया जहां उनलोगों ने अपना अनशन तोड़ा और उपस्थित गृह मंत्रालय के एक अधिकारी को अपना स्मार पत्र सौंपा और मांग की उन्हें प्रधानमंत्री और गृहमंत्री अथवा राष्ट्रपति से मिलने का समय दिया जाए। मौजूद अधिकारी ने वादा किया गया था कि जल्द ही समय निश्चित कर आपको सूचित किया जाएगा। 

इस बीच दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर सोनम वांगचुक और उनके साथियों के रिहाई की मांग की गई। दिनांक 3 अक्टूबर को केंद्र सरकार के सॉलिसिटर जेनरल श्री तुषार मेहता कोर्ट को ग़लत जानकारी दी कि श्री वांगचुक और अन्य संघर्ष कर्मियों को रिहा कर दिया गया है। 

जबकि सच यह है कि उन्हें और उनके साथियों को लोकतांत्रिक समुदाय के लगातार विरोध व दबाव के चलते पांच दिनों तक हिरासत में रखने के बाद नरेंद्र मोदी सरकार ने कल दिनांक 6 सितंबर को रिहा किया।

श्री वांगचुक ने 5 और 6 अक्टूबर को दिल्ली स्थित जंतर-मंतर पर सभा करने के लिए प्रशासन को सूचना दी थी । लेकिन उनके सभा करने पर रोक लगा दी गई जबकि वह स्थल लोकतांत्रिक प्रतिरोध के लिए दिल्ली प्रशासन द्वारा निर्धारित है। 

श्री वांगचुक ने सही कहा है कि पर्यावरण का संरक्षण और सुरक्षा तभी संभव है जब जमीनी स्तर पर लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों और प्रक्रिया की गारंटी होगी। उन्होंने कहा कि स्थानीय लोग अपने पर्यावरण को बचाने में सक्षम हैं।

ज्ञातव्य हो कि नरेंद्र मोदी सरकार के द्वारा लद्दाख को 31 अक्टूबर 2019 को कश्मीर से अलग कर केन्द्र शासित प्रदेश घोषित किया गया। 2020 से ही लेह एपेक्स बॉडी (एल.ए.बी.) और कारगील डेमोक्रेटिक एलायंस के द्वारा उक्त मांगों को लेकर संयुक्त रूप से आंदोलन चलाया जा रहा है। इस आंदोलन को लद्दाख की जनता का व्यापक समर्थन मिल रहा है।

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