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बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में 2095 बच्चों को दिया गया सुरक्षित तैराकी का प्रशिक्षण

  • आपदा प्रबंधन विभाग के निर्देश पर बाल सुरक्षा को लेकर विशेष पहल

सुपौल। बिहार सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग के निर्देशानुसार सुपौल जिले में बाढ़ की आपदा के दौरान बच्चों की सुरक्षा और आत्मरक्षा कौशल को सशक्त बनाने के उद्देश्य से "सुरक्षित तैराकी प्रशिक्षण कार्यक्रम" का आयोजन किया गया। इस विशेष प्रशिक्षण अभियान के अंतर्गत बाढ़ प्रभावित अंचलों में 6 से 18 वर्ष आयु वर्ग के कुल 2095 बच्चों को सुरक्षित तैराकी का प्रशिक्षण प्रदान किया गया।

कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य बाढ़ जैसी आपदाओं के समय बच्चों को तैराकी, आत्मरक्षा और जीवन रक्षक उपायों की जानकारी देना था। इसके साथ ही पंचायत स्तर पर समुदाय में जागरूकता फैलाना और स्थानीय संसाधनों की सहायता से स्थायी समाधान की दिशा में कदम बढ़ाना भी कार्यक्रम का महत्वपूर्ण अंग रहा।

जिला प्रशासन के सहयोग से सुपौल, किशनपुर, सरायगढ़, निर्मली और मरौना अंचलों के चयनित 6 तरणतालों पर प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन किया गया। विभाग द्वारा प्रशिक्षित मास्टर ट्रेनरों एवं आपदा प्रबंधन विशेषज्ञों की देखरेख में प्रशिक्षण दिया गया।

प्रशिक्षण के दौरान बच्चों को तैरने की तकनीक, जल में संतुलन बनाए रखना, प्राथमिक चिकित्सा और आपातकालीन प्रतिक्रिया जैसे महत्वपूर्ण बिंदुओं की जानकारी दी गई। प्रशिक्षण पूर्ण होने पर बच्चों को टीशर्ट और प्रमाण पत्र प्रदान कर सम्मानित भी किया गया।

प्रशिक्षण के बाद बच्चों में आत्मविश्वास में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई। वहीं अभिभावकों और समुदाय में भी बाढ़ जैसी आपदाओं को लेकर जागरूकता बढ़ी। इस पहल से एक प्रशिक्षित बाल समूह तैयार हुआ है, जो आपदा की स्थिति में त्वरित प्रतिक्रिया देने में सक्षम रहेगा।

इस प्रशिक्षण कार्यक्रम का संचालन आपदा विभाग पटना द्वारा प्रशिक्षित मास्टर ट्रेनर सुभाष कुमार यादव, मो. आदम, हरिओम चक्रवर्ती, विद्यासागर यादव, मनोज कुमार शर्मा, जय प्रकाश मंडल, संतोष कुमार सिंह, ताराकांत झा, भुवनेश्वर सिंह, राम सागर रमन, प्रकाश कुमार, नवनीत मुखिया एवं अन्य प्रशिक्षकों द्वारा संबंधित अंचलों के अंचल अधिकारियों की निगरानी में किया गया।

यह कार्यक्रम न सिर्फ बच्चों के जीवन रक्षा कौशल को मजबूत करने में सहायक सिद्ध हुआ, बल्कि यह स्थानीय प्रशासन और समुदाय के बीच बेहतर समन्वय का भी उदाहरण बन गया है। भविष्य में ऐसे कार्यक्रमों का विस्तार और निरंतरता आवश्यक है ताकि और अधिक बच्चों को इसका लाभ मिल सके।

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