• सड़क किनारे की भूमि पर अवैध दुकानें बनाकर किराए की हो रही वसूली, हाट गुदरी नाले पर तो बस पड़ाव में वाहन खड़ी करने की जगह नहीं
सुपौल। नवरात्र आरंभ होते ही बाजारों की रौनक लौटने लगी है। दुकानों में जहां ग्राहक पहले की अपेक्षा अधिक दिखने लगे हैं। वहीं सड़कों की आवाजाही भी बढ़ी है। आवाजाही बढ़ने से छातापुर प्रखंड मुख्यालय में एसएच-91 पर हर दिन जगह-जगह जाम लगना लोगों के लिए मुश्किलें पैदा कर रहा है और आम के साथ लंबी दूरी के वाहनों का परिचालन भी प्रभावित हो रहा है। जाम का मुख्य कारण आम लोग एसएच-91 के दोनों किनारे के अतिक्रमण को मान रहे हैं और हद तक यह सही भी है। खासकर त्योहारों के सीजन में आम जनजीवन व्यापक रुप से प्रभावित हो रहा है और स्थानीय प्रशासन सबकुछ जानकर भी अनजान बना है। इस अनजानेपन की वजह खास अतिक्रमणकारियों के साथ नजदीकी कही जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
चुंकि गत वर्ष भी बड़े तामझाम से अतिक्रमण हटाओ अभियान की शुरुआत हुई थी। संबंधितों को नोटिस जारी हुए, सड़क किनारे के कई छोटे दुकानदारों के कच्चे दुकान टूटे, लेकिन जब रसूखदारों की पक्की दीवार तक बात पहुंची तो सारी कवायद धरी की धरी रह गई। मामले में साहब ऐसे सोए कि अब तक निद्रा भंग नहीं हो पाई है। अनुमंडल स्तर पर नए साहब आए तो एक बार फिर सुगबुगाहट शुरू हुई। बैठकों का दौर चला और आवाज आई कि यदि अतिक्रमणकारी नहीं माने तो कानून अपना काम करेगा। लेकिन इसके बाद जो हुआ स्थिति पहले से भी बद्तर हो गई। लगातार अतिक्रमण का बढ़ता दायरा अब सड़क तक पहुंच चुका है। सड़क खुद में सिमट रही है। नाला पर दुकानें सजती है और तकरीबन तीन किमी के एरिया में अतिक्रमणकारियों का साम्राज्य व्याप्त है।
हद तो तब हुई जब सरकारी सड़क की भूमि पर दुकानें बनाकर किराए पर चढ़ाने का दौर शुरू हो गया। ऐसे में अहम सवाल कि अब कब 'कानून अपना काम करेगा', जबकि आम को पीछे छोड़ खास अवैध निर्माण कर भाड़े तक की वसूली शुरू करने लगे हैं! आम दिनों में तो लोग बाग परेशान होते ही हैं त्योहारों के इस मौसम में सड़क पर बढ़ती भीड़ के कारण लगता जाम और अधिक मुश्किलों का सबब बना है।
छातापुर प्रखंड मुख्यालय में गजब का नजारा है। हर साल अच्छी खासी राजस्व चुकाने के बाद भी बस पड़ाव में यात्री वाहन खड़ी करने की जगह नहीं है और यात्रियों का लोड अनलोड सड़क पर ही होता है। हाट गुदरी सड़क पर लगती है, मांस मछली की दुकानें कोसी योजना की खेतिहर भूमि से लेकर सड़क किनारे तक फैल चुकी है। मुख्य वजह कुछ और नहीं अतिक्रमण ही है। तो क्या इसे शासन जनित अतिक्रमण का नाम दिया जाए! बस पड़ाव की जगह सालों से चिह्नित है तो हाट लैंड की जमीन पर रसूखदार अतिक्रमणकारियों का बोलबाला है।
सालों से मामला अटका है। कभी नोटिस होती है तो कभी जमाबंदी कायम कर दी जाती है और जब शोर मचता है तो रोक भी लगा दी जाती है। कालांतर में हाटलैंड के पक्ष में दो-दो कर्मचारियों की रिपोर्ट है। बावजूद मामले को ऐसे उलझा कर रखा गया है कि उक्त मामला कामधेनु बना है। मामला 492 एकड़ का भी है तो 14 फीट ऊंची चाहरदीवारी से घिरी भूमि की भी है जहां कभी दीवार पर हथौड़ा चलता है तो फिर गिराया गया लोहे का ग्रिल उठकर खड़ा हो जाता है। कार्यवाही कार्रवाई का रूप लेते-लेते अटक जाता है। मतलब, जब जैसे साहब आते हैं मर्जी की गाड़ी आगे बढ़ती रहती है। ऐसे में अतिक्रमणकारियों के हौसले बुलंद हैं और आम जनजीवन आए दिन परेशानियां उठाने को बाध्य है।
कोई टिप्पणी नहीं