सुपौल। जिले को फाइलेरिया मुक्त बनाने की सकारात्मक प्रयास किए जा रहे है। इसे लेकर प्रखंड स्तर पर नाइट ब्लड सर्वे 20 से 29 दिसंबर तक किया जा रहा है। जिसमें 20 दिसंबर से 23 दिसंबर सेंटीनल व 26 से 29 दिसंबर तक रैंडम साइट पर लोगों के रक्त के नमूने लिए जा रहे है। प्रत्येक प्रखंड में 600 लोगों का रक्त पट्ट संग्रह किया जा रहा है। जिला वेक्टर जनहित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ दीप नारायण ने बताया नाइट ब्लड सर्वे की गतिविधि का आयोजन करने का मुख्य उद्देश्य प्रखंड स्तर पर फाइलेरिया व माइक्रोफाइलेरिया की दर को जानने के लिए है। नाइट ब्लड सर्वे के तहत फाइलेरिया प्रभावित क्षेत्रों की पहचान कर वहां रात में (8:30 से लेकर12:00 तक ) लोगों के रक्त के नमूने लिए जाते हैं, इसे प्रयोगशाला भेजा जाता है। रक्त में फाइलेरिया के परजीवी की मौजूदगी का पता लगाया जाता है। फाइलेरिया का परजीवी रात में ही सक्रिय होते हैं, इसलिए रक्त के नमूने रात्रि में ही लिए जाते है। नाईट ब्लड सर्वे से सही रिपोर्ट पता चल पाता है। ताकि फाइलेरिया के संभावित मरीज का समुचित इलाज किया जा सके। इधर सदर प्रखंड के चैनसिंहपट्टी में नाइट ब्लड सर्वे केंद्र का फीता काट कर सीएस ने उद्घाटन किया।
फाइलेरिया उन्मूलन के लिए नाइट ब्लड सर्वे का आयोजन जिले के 06 प्रखंड सदर ब्लॉक, राघोपुर, त्रिवेणीगंज, पिपरा, किशनपुर, प्रतापगंज में हो रहा है। उक्त प्रखंड में दो सत्र स्थलों का चुनाव किया गया है। जिसमें एक सेंटिनल तथा एक रेंडम साइट निर्धारित किया गया है। जिसमें प्रत्येक साइट पर से 300 लोगों के रक्त पट्ट के नमूने लिए जा रहे है। एक प्रखंड से 600 लोगों के रक्त के नमूने लिए जा रहे है। जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ दीप नारायण ने बताया कि फाइलेरिया एक गंभीर बीमारी है। यह नेगलेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज की श्रेणी में आता है। फाइलेरिया हो जाने के बाद धीरे-धीरे या गंभीर रूप देने लगता है। इसकी नियमित और उचित देखभाल कर जटिलताओं से बचा जा सकता है। उन्होंने यह भी बताया कि फाइलेरिया से बचाव के लिए समय-समय पर सरकार द्वारा "सर्वजन दवा सेवन" कार्यक्रम चलाया जाता है। इसमें आशा कार्यकर्ता घर-घर जाकर फाइलेरिया से बचाव की दवा खिलाती है। जिले में 10 फरवरी से सर्वजन दवा वितरण कार्यक्रम के तहत लोगों को दवा खिलाई जाएगी। इसके लिए जरूरी तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है।
हाथी पांव होने पर देखभाल जरूरी
भीबीडीसीओ विपीन कुमार ने बताया कि फाइलेरिया के कारण हाथीपांव हो जाता है। हाथीपांव होने पर उसे चोट या जख्म से बचाना जरूरी है। इसके लिए एमएमडीपी कीट दिया जाता है। हाथी पांव से पीड़ित लोग अपने नजदीक के किसी भी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जाकर चिकित्सक से इसकी देखभाल की जानकारी ले सकते हैं। हाथी पांव के शिकार लोगों के लिए एमएमडीपी किट दिए जाते हैं। इस किट में हाथी पांव की देखभाल तथा साफ सफाई करने के लिए आवश्यक दवाइयां तथा अन्य वस्तु होते हैं। देखभाल और उपचार की जानकारी लेकर इसे बढ़ने से रोका जा सकता है। फाइलेरिया मरीजों के लिए रोग प्रबंधन में एमएमडीपी किट काफी उपयोगी है।


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