• छातापुर प्रखंड कार्यालय के समीप जिस पोखर के जीर्णोद्धार पर मनरेगा से ढाई लाख से अधिक का व्यय, अब वहां छठ घाट निर्माण के लिए जेसीबी का उपयोग
सुपौल। जिस प्रखंड के अधिकांश कामगारों की रोजी रोटी बाहरी प्रदेश में पलायन के भरोसे चलती हो वहां की विकासात्मक योजनाओं का दारोमदार मशीनों के ऊपर है। वैसे भी छातापुर प्रखंड की योजनाओं में अनियमितता की कहानी नई नहीं है। बिना बोर्ड लगाए योजनाओं का क्रियान्वयन तथा घटिया निर्माण सामग्री का उपयोग कर निष्पादन का फ़साना तो आए दिन की बातें हो चुकी है। शिकायतें होती है पर शिकायतों पर कार्रवाई नहीं होती। बड़े साहब पंचायतों के जनसंवाद कार्यक्रम में बिचौलिया से दूर रहने की ताकीद कर जाते हैं। लेकिन ऐसा एक भी पंचायत नही जहां बगैर बिचौलिए की दख़लअंदाजी से कार्य का निष्पादन हो रहा हो। यहां तो योजना क्रियान्वयन से लेकर निष्पादन तक के लिए जिम्मेदार अभिकर्ता को भी पता नहीं होता कि वे फलां योजना के अभिकर्ता हैं और योजना कार्य निष्पादित हो जाती है। योजना स्थलों की हकीकत है कि अभिकर्ता स्थल पर दिखते नहीं, तकनीकी सहायक गाहे-बगाहे नजर आते हैं और मानिटरिंग के लिए जिम्मेदार बोझ तले दबे होते हैं। ऐसे में विकास की योजनाएं सरकारी राशि की लूट के लिहाफ तले ढंक कर रह गया है। हालात पर गौर करें तो बहियार में पक रहा धान दिवाली से छठ पर्व में लौटकर आने वाले कामगारों के भरोसे है और जिनकी उपलब्धता है उनकी ऊंची बोली है। विडंबना यही है कि रोजगार की कमी से जूझते प्रदेश में व्यापक पैमाने पर पलायन की स्थिति होती है और उसी प्रदेश के छातापुर में योजनाओं का कार्य जेसीबी से निपटाया जाता है। योजना कार्य में जेसीबी के उपयोग की बातें दूरदराज़ के पंचायतों से निकलकर आती है तो साहेब की नजरें नाटकीय ढंग से टेढ़ी होती है। लेकिन जब प्रखंड कार्यालय के समीप जेसीबी का उपयोग दिनदहाड़े हो और संबंधित पास के कार्यालय से भी बाहर ना निकलें तो ईमान की हदें दम तोड़ जाती है। योजना कार्य में पारदर्शिता का नियम तो पाकेट का फ़साना बनकर रह गया है। यही कारण है कि योजना क्रियान्वयन से पूर्व स्थल पर सूचना पट्ट नजर नहीं आते। ज्यादा बाध्यता हुई तो बोर्ड बनाकर विवरणी अंकित करने से परहेज़ बरता जाता है। वर्तमान में यही कहानी प्रखंड कार्यालय के समीप दोहराई जा रही है। प्रखंड कार्यालय के समीप कृषि कार्यालय से सटे पोखर में दो साल पूर्व जीर्णोद्धार के नाम पर ढाई लाख से अधिक मनरेगा की राशि खर्च की गई और अब वहां छठ घाट निर्माण के लाखों के प्राक्कलन पर कार्यारंभ हुआ है। शुरुआत में स्थल पर मनरेगा का बोर्ड लगा था जिसपर अंकित सूचना को जेसीबी से खुरच दिया गया। चिल्लमपों मची तो स्थल से जेसीबी हटा ली गई। लेकिन सोमवार को एक बार फिर से स्थल पर जेसीबी लगाकर काम की शुरुआत कर दी गई। बदलाव के नाम पर इतना भर हुआ कि बोर्ड का स्ट्रक्चर खड़ा किया गया। अब ऐसे में यदि बोर्ड बनाकर सूचना अंकित करने तक जेसीबी ने अपना कार्य संपन्न कर लिया तो साहेब की मेहरबानी तो काम आ ही गई! हैरानी यह भी कि योजना कार्य की जिम्मेदारी लेने वाले एक भी करपरदार सोमवार को स्थल पर मौजूद नहीं थे। मौजूदगी बस उनकी थी जिसकी तरफ बार-बार बड़े साहब की मनाही होती है।


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