- छातापुर थाना से महज सात सौ मीटर का मामला, आपसी सेटलमेंट करवाने में उलझे रहे थानेदार
सुपौल। एस एच 91 किनारे छातापुर पेट्रोल पंप के समीप अनियंत्रित होकर दुकान में घुसा टैंकर 48 घंटे तक जब की तस अवस्था में रहा और स्थल पर बारी-बारी से चौकीदार भी तैनात रहे बावजूद पुलिस की कार्रवाई शून्य पर अटका रह गया। इस बीच टैंकर मालिक को पीड़ित दुकानदारों से आपसी सामंजस्य बिठाने के लिए भरपूर समय दिया गया और घटना तिथि को ही एक अन्य टैंकर भिड़ाकर 18 हजार लीटर दूध भी अनलोड कर ढो लिया गया। लेकिन टैंकर मालिक की स्थल पर दो दिनों की मौजूदगी यह जता गई कि कानून के स्थानीय रखवाले इनके प्रभाव में हैं! हालात पर गौर करें तो गुरुवार की आधी रात को दूध लदा राजस्थान नंबर अंकित टैंकर चूड़ा मिल की दीवार को तोड़ते हुए पड़ोस की दुकान को भी क्षतिग्रस्त कर दिया और रविवार की सुबह तक टैंकर उसी अवस्था में खड़ा रहा। शनिवार को पहुंचे टैंकर मालिक और उसके सहयोगी टैंकर को बाहर निकालने पर अड़े रहे तो पीड़ित दुकानदार क्षतिपूर्ति की मांग पर डटे थे। रात तक बात नहीं बनने पर टैंकर मालिक सहयोगियों के साथ लौट गए, लेकिन इस बीच बारी-बारी से थाने के चौकीदार को खाली टैंकर की रखवाली के लिए मौके पर मौजूद जरूर रखा गया। इस दौरान थाने से टैंकर की चाबी इस लिए भेजी गई कि टैंकर के स्वामित्व का दंभ भरने वाले घुसी दुकानों से घटना के लिए जिम्मेदार वाहन निकाल सकें। रविवार को मेलफांस से गाड़ी निकली भी पर थाने नहीं पहुंच पाई। दोपहर में टैंकर के तथाकथित विकलांग स्वामी थाने पहुंचे जिन्होंने एक संवाददाता को देखते ही पेट की भूख का हवाला दिया। थानेदार के इशारे ने उक्त संवाददाता(मैं नहीं)का लिहाज करते अपनी भूख को नजरंदाज करते हुए उन्हें अपनी भूख मिटाने की सलाह दी पर याराना आंखों की जुस्तजू बता गई थी। सूत्र बताते हैं कि एक लाख 75 हजार की जगह सवा लाख में दुकानदारों से मामले का सेटलमेंट तो कर लिया गया है पर थाने के बड़े बाबू उससे भी अधिक का डिमांड कर रहे हैं। संदर्भ में इतना भर कहना है कि जिस सुपौल जिले में मियां बीवी के झगड़े की सूचना पर 112 की पुलिस तत्काल हाजिर हो जाती है या फिर सरेआम हुई घटना पर चौकीदार व पुलिस कर्मियों के बयान पर मुकदमा हो जाता है। वहीं की पुलिस राजकीय उच्च पथ पर सरेराह हुई घटना पर 48 घंटे से नफा नुकसान की गणित में भला क्यूं कर उलझी है! घंटे भर में आखिरकार किसके इशारे पर 18 हजार लीटर दूध अनलोड कर ढो लिया गया! लाजिमी था दूध को बर्बाद होने से बचाई जाए पर ढोया जा रहा दूध सही था या ग़लत इसका भेद तो गर्भ में ही रह गया। कृपया ध्यान दें, टैंकर पर यह उल्लेखित नहीं है कि किस कंपनी का दूध ढोने के लिए उसे अधिकृत किया गया है? जानकार बताते हैं कि जिलेभर के पशुपालकों के मवेशी का दूध सुपौल डेयरी को आपूर्ति होता है तो फिर इस राजस्थान नंबर के टैंकर से ढोया जानेवाला दूध बरौनी पहुंचाने की चर्चा भला क्योंकर हो रही है! कहीं निवाले में अहम, दूध के कारोबार में भी हेराफेरी का खेल तो नहीं चल रहा!

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