- गुरु-शिष्य परंपरा की मजबूती के लिये इस प्रकार का कार्यक्रम महत्वपूर्ण : कुलपति
सुपौल। जिला मुख्यालय स्थित भारत सेवक समाज कॉलेज में रविवार को एक दिवसीय जिला स्तरीय गुरु-शिष्य परम्परा भारतीय संस्कृति का आधार विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों के द्वारा दीप प्रज्वलित कर किया गया। जिसके बाद छात्राओं द्वारा स्वागत गान से अतिथियों का स्वागत किया। कॉलेज के प्राचार्य डॉ संजीव कुमार ने सभी अतिथियों को बुके, पाग व शॉल से स्वागत किया।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कुलपति प्रो (डॉ) विमलेंदु शेखर झा ने कहा कि गुरु-शिष्य परंपरा भारतीय संस्कृति की पहचान है। कहा कि नयी शिक्षा नीति इसलिये लाया गया कि गुरु-शिष्य परंपरा को और मजबूत किया जा सके। गुरु और शिष्यों के बीच में मजबूत संबंध स्थापित हो सके। एक परिवार के रूप में रहे। बताया कि जब तक गुरु और शिष्य एक साथ नहीं बैठेंगे, तब तक नयी शिक्षा नीति का उद्देश्य पूरा नहीं हो पायेगा। गुरु-शिष्य परंपरा की मजबूती के लिये इस प्रकार के कार्यक्रम को महत्वपूर्ण बताया। कुलपति प्रो डा झा ने विभिन्न जिले के नोडल महाविद्यालयों में गुरु शिष्य परम्परा की शुरुआत करवाकर इतिहास रच दिया है। भारत के इतिहास में प्रथम बार आधिकारिक तौर पर इस परंपरा की फिर से शुरुआत हो रही है जिससे भारत के एक बार फिर से विश्व गुरु बनने की आशा पुनर्जागृत हो रही है।
कुलसचिव प्रो विपीन कुमार राय ने कहा कि आप हमारे विभिन्न धार्मिक ग्रंथों और कालखंडों में देखते हैं कि गुरु वशिष्ट और दशरथ के राज कुमारों को जो शस्त्र-शास्त्र का जो प्रशिक्षण दिया गया, वह आदर्श गुरु का ही प्रतिरूप है। महाभारत काल में पांडव और कौरवों के राजकुमारों को जो प्रशिक्षण दिया वह गुरु द्रोणाचार्य ही हैं। द्वारिका के राजा के पुत्र बलराम और कृष्ण को भी गुरु के द्वारा ही प्रशिक्षण दिया गया। कालीदास के भी गुरु थे, विवेकानंद के भी गुरु परमहंश थे। यह एक गुरु और शिष्य की आदर्श शृंखला है। गुरु और शिष्य परंपरा सभी देशों में है। लेकिन भारत की संस्कृति अजीब है। हम अपने से बड़ों का सम्मान करते हैं। छोटे को स्नेह देते हैं। गुरु हमें ज्ञान देता है और अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते हैं। गुरु हमें गलत और सही में फर्क करने का शिक्षा देता है। गुरु की वजह से ही हम एक अच्छे और आदर्श व्यक्ति बनते हैं।
बीएसएस कॉलेज के प्रधानाचार्य प्रो संजीव कुमार ने कहा कि गुरु शिष्य परम्परा भारतीय एवं सनातन संस्कृति की देन है। इस परंपरा के माध्यम से ही पूरे विश्व में ज्ञान का प्रकाश फैला और मानवीय सभ्यता संस्कृति और संस्कृति का विकास हुआ। कहा कि ब्रह्मांड के प्रथम गुरु भगवान शिव हैं जिन्होंने सप्तऋषियों को योग का ज्ञान दिया। सप्त ऋषियों से पूरे विश्व में ज्ञान का प्रसार हुआ। भारत में में इस परंपरा के माध्यम से पूरे विश्वमें योग, अध्यात्म, धर्म, शास्त्र, विज्ञान, कला, आयुर्वेद, युद्ध कौशल, खगोल, ज्योतिष आदि विधाओं की जानकारी फैलाने की परंपरा भारत के ऋषियों ने जारी रखी और तब से यह प्रक्रिया अनवरत रूप से गुरु शिष्य परम्परा के रूप में जारी है। परिणामस्वरूप भारत विश्वगुरू कहलाने लगाए परंतु विगत कुछ वर्षों में अंग्रेजों के शासन काल में इस परंपरा को नष्ट करने का भरपूर प्रयास किया।


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