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कृष्ण भक्ति के संबंध में जितने ग्रंथ और रचनाएं लिखी गई है, उतनी किसी अन्य के संबंध में नहीं है : आचार्य धर्मेंद्र


  • 26 को भगवान श्री कृष्‍ण का मनाया जायेगा जयंती व्रत 

सुपौल। इस बार 26 अगस्त को श्री कृष्ण जयंती व्रत मनेगी। अगले दिन यानि 27 अगस्त को कृष्ण अष्टमी व्रत तथा उसके अगले दिन 28 अगस्त को प्रातः काल व्रत का पारण होगा। त्रिलोकधाम गोसपुर निवासी आचार्य धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने कृष्ण जन्म महात्म्य एवं रासलीला रहस्य पर प्रकाश डालते हुए बताया कि भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में अर्ध रात्रि के समय वृष राशि के चंद्रमा में हुआ था। संपूर्ण भारत में यह महापर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

 बताया क‍ि अधर्म का नाश, साधु संतों की सेवा और रक्षा, राक्षसों का संहार तथा धर्म की स्थापना करना ही इनके अवतार का मुख्य लक्ष्य था। श्री कृष्ण का स्वरूप आज से 5000 वर्ष पहले जितना सार्थक था, आज भी उतना ही सार्थक है और आगे भी रहेगा। कहा क‍ि कृष्ण की भक्ति के संबंध में, जीवन चरित्र के संबंध में, उनकी लीलाओं के संबंध में जितने ग्रंथ एवं रचनाएं लिखी गई है, उतनी किसी अन्य के संबंध में नहीं है। 

श्री कृष्ण का अवतरण इस धरा पर प्रेम, ज्ञान, कर्म और योग का विशेष संदेश लेकर उपस्थित हुआ। इस दिन जो महान घटना घटित हुई वह अपने आप में विशेष मुहूर्त बन गया। इसी रात्रि को संकल्प कर कोई भी साधना की जाए तो वह पूर्ण सफल होती है। क्योंकि भगवान श्री कृष्ण ने जीवन की सारी क्रियाएं एक मानव की भांति करते हुए हर कार्य में संघर्ष किया और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त की।

 उन्होंने अपने जीवन की समस्त क्रियाओं के द्वारा ही आने वाले युग को संदेश दिया। इसलिए श्री कृष्ण पूर्ण ब्रह्म, पूर्ण पुरुष, योगेश्वर और जगतगुरु हैं। कहा क‍ि जन्माष्टमी के दिन कृष्ण पूजन समान विधि से तो सभी करते हैं, लेकिन मंत्रोक्त विशेष साधना करने से कार्यों में विशेष सफलता प्राप्त होती है।

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