पटना, 11 जुलाई 2025
कला, संस्कृति एवं युवा विभाग, बिहार सरकार के पुरातत्व निदेशालय द्वारा बिहार संग्रहालय, पटना के ऑडिटोरियम सभागार में “भारत के शैलचित्र एवं पुरातत्व” विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी में देशभर से पुरातत्व, इतिहास और शैलचित्र विशेषज्ञों, विद्वानों, शोधार्थियों और छात्रों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया।
कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन के साथ हुआ, जिसके बाद अतिथियों को पुष्पगुच्छ और अंगवस्त्र भेंटकर सम्मानित किया गया। श्रीमती रचना पाटिल, निदेशक, पुरातत्व एवं संग्रहालय निदेशालय, ने स्वागत भाषण में संगोष्ठी के उद्देश्य और महत्व पर प्रकाश डाला।
संगोष्ठी में चार प्रमुख व्याख्यान प्रस्तुत किए गए:
- प्रो. वी. एच. सोनावाने, पूर्व विभागाध्यक्ष, बड़ोदरा विश्वविद्यालय, गुजरात, ने “Glimpse of Indian Rock Art” पर अपने विचार रखे। उन्होंने भारतीय सभ्यता को जीवंत और समृद्ध बताया।
- प्रो. बंशी लाल मल्ला, पूर्व विभागाध्यक्ष, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, नई दिल्ली, ने “Genesis of Indian Art” पर बोलते हुए भारतीय सभ्यता की प्राचीनता और पंचमहाभूत से इसके गहरे संबंध को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि धार्मिक अभिव्यक्ति में चित्रों का विशेष महत्व है।
- डॉ. एस. बी. ओटा, सेवानिवृत्त संयुक्त महानिदेशक, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, ने “Earliest Inhabitants of Ladakh and Their Artistic Creativity” पर प्रकाश डाला और लद्दाख में रॉक आर्ट की प्रचुरता पर जोर दिया।
- डॉ. ऋचा नेगी, विभागाध्यक्ष, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, ने “Rock Art and Ethnoarchaeology” पर व्याख्यान दिया। उन्होंने लोक परंपराओं, लोकगीतों और लोककलाओं में छिपे समृद्ध इतिहास की चर्चा की।
संगोष्ठी में उपस्थित छात्रों, शोधार्थियों और आम जनता ने विभिन्न सत्रों में गहरी रुचि दिखाई और संवाद सत्रों में सक्रिय भागीदारी की। यह आयोजन बिहार में सांस्कृतिक और पुरातात्विक चेतना को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ।
कार्यक्रम का समापन गरिमामय वातावरण में हुआ। कला, संस्कृति एवं युवा विभाग की विशेष कार्य पदाधिकारी सुश्री कहकशाँ ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया। यह संगोष्ठी भारत की सांस्कृतिक विरासत को समझने और संरक्षित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम रही।
कोई टिप्पणी नहीं