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बिहार लोक शिकायत निवारण अधिकार अधिनियम बना आम लोगों की आवाज़, सुकनी देवी को मिला वर्षों पुराना न्याय


सुपौल। बिहार सरकार द्वारा प्रशासनिक पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के उद्देश्य से लागू बिहार लोक शिकायत निवारण अधिकार अधिनियम, 2015 आम नागरिकों के लिए एक सशक्त माध्यम बन चुका है। इस अधिनियम के अंतर्गत त्रिवेणीगंज अनुमंडल की सुकनी देवी को वर्षों से लंबित अपने भूमि संबंधी समस्या का समाधान बिना किसी जटिलता के मात्र कुछ सप्ताहों में प्राप्त हुआ।

सुपौल जिला के जदिया थाना क्षेत्र अंतर्गत ग्राम गुड़िया, वार्ड संख्या 09 निवासी सुकनी देवी के पति स्व. सरयुग यादव के नाम की जमाबंदी संख्या 96/262 ऑनलाइन जमाबंदी पंजी पर दर्ज नहीं हो पा रही थी, जिससे वे लंबे समय से परेशान थीं।

समस्या के समाधान के लिए सुकनी देवी ने दिनांक 01.03.2025 को परिवाद संख्या 506310101032505057 के तहत अनुमंडलीय लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी, त्रिवेणीगंज के समक्ष अपनी शिकायत दर्ज कराई। शिकायत मिलते ही कार्यालय ने त्वरित कार्रवाई करते हुए अंचलाधिकारी, त्रिवेणीगंज को सूचना प्रेषित की।

जांच में पुष्टि हुई कि संबंधित जमाबंदी पहले से ही भाग संख्या 9, पृष्ठ संख्या 2664 पर सरयुग यादव के नाम से दर्ज थी, परंतु उसमें खाता, खेसरा एवं रकबा का विवरण अद्यतन नहीं था। लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी के निर्देश के आलोक में अंचलाधिकारी द्वारा जमाबंदी का ऑनलाइन अद्यतन कार्य पूरा कर दिया गया।

इस त्वरित न्याय से संतुष्ट होकर सुकनी देवी ने सरकार के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि “जो कार्य वर्षों से अटका हुआ था, वह अब बिना किसी रिश्वत या भाग-दौड़ के कुछ ही दिनों में पूरा हो गया। यह अधिनियम आम जनता के लिए एक वरदान है।”

ज्ञात हो कि बिहार लोक शिकायत निवारण अधिकार अधिनियम, 2015 को 5 जून 2016 को राज्यभर में लागू किया गया था, जिसके तहत 60 कार्य दिवस की समय सीमा में शिकायतों का समाधान किया जाता है। अब तक 17 लाख से अधिक मामलों का निवारण इस अधिनियम के तहत हो चुका है।

इस अधिनियम की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि शिकायतकर्ता को कार्यालय जाने की आवश्यकता नहीं — वह घर बैठे https://lokshikayat.bihar.gov.in, जन समाधान मोबाइल ऐप या टोल फ्री नंबर 18003456284 के माध्यम से अपनी शिकायत दर्ज कर सकता है।

जनविश्वास और जवाबदेही का प्रतीक बन चुका यह अधिनियम, शासन और आम नागरिकों के बीच की दूरी को घटा रहा है और 'न्याय के साथ विकास' की दिशा में एक सशक्त कदम साबित हो रहा है


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