सुपौल। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को आयुर्वेद के जन्मदाता भगवान धन्वंतरि का प्राकट्य हुआ था। इसीलिए संपूर्ण भारत में इसे धनतेरस पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस बार धनतेरस 10 नवंबर को है। उनका प्राकट्य समुद्र मंथन के द्वारा हुआ था। अतः धन्वंतरि जयंती के रूप में मनाने की परंपरा है। इस दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा कर उनसे आरोग्य की कामना की जाती है। त्रिलोकधाम गोसपुर निवासी मैथिल पंडित आचार्य धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने कहा कि इस दिन चांदी के बर्तन तथा आभूषण खरीदने का विधान है एवं सायंकाल में यमराज के निमित्त दीपदान भी किया जाता है। इस दिन अपने द्वार चौखट के पास यमराज के निमित्त दीपदान करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है। धनतेरस के रूप में इस दिन धन अध्यक्ष कुबेर की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। कुबेर के साथ-साथ लक्ष्मी जी का भी आवाह्न पूजन होता है। जिससे मनुष्य निश्चित कुबेर के समान संपत्ति का स्वामी एवं धन धान की वृद्धि भी होती है। यह पर्व सुख समृद्धि रिद्धि सिद्धि शांति हेतु मनाया जाता है। इस दिन किसी भी व्यक्ति को धन उधार नहीं देना चाहिए एवं धन का दुरुपयोग भी नहीं करना चाहिए। यमराज निमित्त दीपदान करने का तात्पर्य है कि त्रयोदशी के दिन दीपदान से पास एवं दंड लिए मृत्यु के देवता तथा देवी श्यामा सहित यमराज मुझ पर प्रसन्न हों। इस दिन धन्वंतरी भगवान का यदि विधि-विधान पूर्वक पंचोपचार व षोडशोपचार विधि से उनका पूजन तथा आराधना किया जाए तो अवश्य ही मनुष्य अकाल मृत्यु पर विजय प्राप्त करके संपूर्ण प्रकार के मनोरथ की सिद्धि प्राप्त होती है।
धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा कर उनसे करें आरोग्य की कामना
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