बिहार के अद्वितीय प्रतिभाओं में से एक भारत के प्रथम राष्ट्रपति, स्वतंत्रता सेनानी और संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले स्व. डॉ. राजेंद्र प्रसाद की जयंती यानि 3 दिसंबर को राष्ट्रीय अधिवक्ता दिवस के रूप में मनाया जाता है। डॉ. राजेंद्र प्रसाद अपने समय के एक प्रख्यात अधिवक्ता थे। नव भारत के निर्माण में डॉ. राजेंद्र प्रसाद की महती भूमिका थी।
वकालत को भारत में ही नहीं वरन् संपूर्ण विश्व में एक सम्मानित और गरिमामय पेशे के रूप में जाना जाता है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में वकीलों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, जिनमें डॉ. बी. आर. अंबेडकर, जिन्हें भारतीय संविधान का जनक कहा जाता है, का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इसके अलावा महात्मा गांधी, कृष्णास्वामी अय्यर आदि भी पेशे से बैरिस्टर थे। इस तरह आजादी से लेकर संविधान निर्माण तक वकीलों का योगदान विस्मरणीय है।
वकालत सिर्फ एक पेशा नहीं, बल्कि हर वकीलों के लिए पीड़ितों को न्याय दिलाने, सच्चाई को सामने लाने और जनता में कानून के प्रति विश्वास जगाने की एक जिम्मेदारी है और हर वकील को अपनी जिम्मेदारी ईमानदारीपूर्वक निभानी चाहिए। जिस कानून की पुस्तक को पढ़कर वकील अदालत में खड़े होते हैं, उसकी इज्जत करना और उसकी गरिमा को बनाए रखना हर वकील का फर्ज है। अदालत उस मंदिर को कहा जाता है, जहां सच्चाई के लिए तलवार की नहीं कलम की ताकत का इस्तेमाल किया जाता है और इसी ताकत के बल पर हर अपराधियों को उसके कुकृत्य की सजा मिलती है और पीड़ितों को न्याय। जनता ईश्वर से पहले जिस दरबार में न्याय की उम्मीद लेकर जाते हैं वो अदालत ही है और अधिवक्ता, जिसे 'कानून का रक्षक' कहा जाता है उस न्याय के अदालत का पुजारी है। साथ ही, "आंखों में पट्टी बंधी हुई और हाथ में तराजू ली हुई औरत" न्याय का प्रतीक है। वकीलों ने हर युग में मानवता के हित के लिए कार्य किया है और आज भी मानवतावादी विचाओं को समाज में जिंदा रखने के लिए प्रयासरत है।
वकालत सर्वप्रथम 1327 ई. में एडवर्ड तृतीय द्वारा शुरू किया गया था, जिसमे वकीलों के लिए एक अलग ही वेशभूषा तैयार की गई थी। वकीलों और न्यायाधीशों को काले रंग की वेशभूषा प्रदान की गई। भारत में स्वतंत्रता के बाद सन् 1961 में न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं के लिए एक नियम बनाया गया था, जिसमें अधिवक्ताओं को काले रंग की कोट पहनना अनिवार्य कर दिया गया। काला कोट अधिवक्ताओं को एक अलग ही पहचान देती है जो अनुशासन और आत्मविश्वास का प्रतीक है। इसके अलावा अधिवक्ताओं को काला कोट प्रदान करने का एक बड़ा कारण है कि वकालत पेशा हमेशा बेदाग रहे, इसपर किसी भी प्रकार के धब्बे न लग सके।
परंतु अफसोस, आज काले कोट पर भी दाग लगने लगे हैं। रिश्वत और भ्रष्टाचार के प्रभाव से आज कानून के पेशे भी अछूते न रहे। एक तरफ जहां पीड़ित न्याय की आस में अदालत का दरवाजा खटखटाते हैं तो दूसरी ओर चंद पैसों की लालच में वकील भी सच्चाई और सबूत को मिटाने में लग जाते हैं तथा अपनी ईमान को सरेआम नीलाम कर देते हैं। जिस वकील के हाथों में कानून की जिम्मेदारी होती है, वही आज कानून का भक्षक बन रहे हैं। आखिर, किसके सहारे जनता कानून पर भरोसा करेगी? इसी का परिणाम है कि जनता का विश्वास कानून और न्याय प्रणाली पर से उठने लगा है और लोग कानून तोड़ने से भी नहीं कतराते।
लेकिन कहते हैं कि न्याय में देर हो सकती है, पर अंधेर नहीं। अभी भी वक्त है कि हम जनता का कानून के प्रति विश्वास को न टूटने दे। इसके लिए आज हर अधिवक्ता को अपने उस शपथ को याद करना चाहिए, जो उन्होंने कानून की रक्षा करने के लिए ली थी। एक संकल्प भारतीय न्याय प्रणाली को हमेशा सर्वोच्च रखने के लिए लेना चाहिए। अगर ऐसा होगा तो मैं दावे के साथ कह सकती हूं कि भारत की सशक्त कानून व्यवस्था अपराध को कम करने में कामयाब होगी। इसके साथ ही जनता कानून की इज्जत करेगी और हमारा न्याय प्रणाली बेदाग रहेगी।
एक पेशेवर अधिवक्ता बनना मुश्किल नहीं है, मुश्किल है एक जिम्मेदार, कर्तव्यनिष्ठ और ईमानदार अधिवक्ता बनना। आज अधिवक्ता दिवस पर मैं देश के सभी अधिवक्ताओं को शुभकामना प्रेषित करती हूं। हमें विश्वास है कि अधिवक्तागण अपने कर्तव्यों का पालन करेंगे और हमारे देश की न्याय प्रणाली हमेशा सुदृढ़ और सर्वोच्च रहेगी।
सृष्टि मिश्रा, (कर्णपुर, सुपौल)
आज अधिवक्ता दिवस के अवसर पर, सभी भूतपूर्व, वर्तमान, एवं भावी अधिवक्ता को, अधिवक्ता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।।
जवाब देंहटाएंभगवान के अलावा सिर्फ और सिर्फ अधिवक्ता गण ही ऐसे लोग हैं, जो एक अपराधी को समझने कि कोशिश करते हैं।