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पौषी पूर्णिमा के दिन कोसी स्नान के उपरांत दान आदि करना होता है फलदायक : आचार्य धर्मेंद्रनाथ

सुपौल। धर्म ग्रंथों में पौष माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा पौषी पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इस बार पौषी पूर्णिमा गुरूवार को है। इस दिन कौशिकी अर्थात कोसी स्नान के उपरांत दान आदि करना फलदायक होता है। पंडित आचार्य धमेंद्रनाथ मिश्र ने कहा कि पौषी पूर्णिमा के दिन आकाश में चंद्रमा पूरे आकार में होता है। साथ ही इस दिन खास कर चंद्रमा की उपासना की जाती है। पौषी पूर्णिमा के अवसर पर पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व है। पूर्णिमा के दिन कोसी, त्रिवेणी, गंगा, हरिद्वार, गंगा सागर के अलावा अन्य पवित्र नदियों में श्रद्धालु डुबकी लगाते हैं। पूर्णिमा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए श्री मिश्र ने बताया कि इस दिन गंगा सहित सभी पवित्र नदियों में अमृत प्रवाहित होता है। साथ ही मान्यता यह भी है कि इस दिन इन पवित्र नदियों में सामूहिक स्नान करने की प्रक्रिया शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। इन नदियों में स्नान करने वाले को सदाचारी, शांत, मनवाले तथा जितेंद्र होना चाहिए। साथ ही ध्यान जप तप दान आदि संपादित करना चाहिए। पूर्णिमा के दिन प्राय सभी वर्गों के पुरुष स्त्री बाल प्रातः स्नान का संकल्प भी लेते हैं। पूर्णिमा के दिन से ही प्रसिद्ध तीर्थ स्थल प्रयागराज में माघ मेला प्रारंभ होता है। साथ ही माघ माह में प्रयागराज के संगम तट पर कल्पवास भी किया जाता है। कल्पवास का अर्थ होता है संयम तट पर निवास कर विद्या, अध्ययन, ध्यान, साधना आदि कार्य करना। या यूं कहे की ज्ञान अर्जन करना ही कल्पवास कहलाता है। 


 

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