- पिपरा प्रखंड के निर्मली महादलित टोला में तीन दिवसीय दीना-भदरी मेला का हुआ आयोजन
सुपौल। पिपरा प्रखंड क्षेत्र अंतर्गत निर्मली पंचायत वार्ड नंबर 07 महादलित टोला में तीन दिवसीय दीना-भदरी मेला का आयोजन स्थानीय लोगों के द्वारा सार्वजनिक रूप से किया गया। मेला का उद्घाटन पंचायत के ही डॉ सुभाष मेहता ने फीता काटकर किया। उद्घाटन के दौरान डॉ मेहता ने कहा कि बाबा दीनाभद्री हमारे समाज के पूजनीय देवता हैं। उन्होंने समाज को मानवता का सीख दिया। मेला में 24 घंटे तक जिले के विभिन्न क्षेत्रों से आए कलाकारों द्वारा दीनाभद्री लोकगाथा का मंचन कर दर्शकों का दिल जीत लिया। इस मेला को लेकर महादलित के लोग काफी खुश थे। बता दें कि मुसहर जाती के लोग दीना-भदरी को लोक देवता के रूप में पूजते हैं। लोक कथा के अनुसार दीना-भदरी का जन्म नेपाल के सप्तरी जिला स्थित जोगिया गांव में कालू सादा और नीरसो के यहां हुआ था। दोनों भाई में दीना बड़े और भदरी छोटे थे, वे दोनों बाल्यकाल से ही वीर और साहसी थे। दोनों भाई कुश्ती खेलने में माहिर थे। दीना भद्री की कथा विन्यास में वर्णित संघर्ष निश्चित रूप से समाज और इतिहास के यथार्थ के बुनियाद पर खड़ा दिखाई देता है। बिहार के सभी प्रचलित लोकगाथाओं की तरह दीनाभद्री भी दलितों के नायक कहे जाते हैं, जो अपने संघर्षशीलता के कारण खासकर मिथिलांचल के दलित जातियों में प्रचलित लोककथा अपनी जातीय और क्षेत्रीय सीमाओं से परे पूरे बिहार में सामान रूप से पसंद की जाती है। किदवंती कथा के अनुसार दीना-भदरी एक बार मौलवी का रूप धारण कर मक्का मदीना पहुंचे और मक्केश्वर बाबा का दर्शन करते हुए मक्केश्वर बाबा को अपने देश ले जाने के लिए सोच लिया। लेकिन मक्केश्वर बाबा के धरती में समा जाने के कारण उन्हें वापस लौटना पड़ा था। दीना भद्री हमेशा अन्याय के खिलाफ लड़ते रहे समाज में हो रहे अत्याचार के खिलाफ लड़ाई लरते हुए बहुत सारे दानवों और राक्षसों का अंत किया। उनके बताए मार्गों पर आज भी चलने के लिए लोगों के बीच वीर दीना-भदरी लोक गाथा का आयोजन किया जाता है। मेला आयोजन करने में राजेश सादा, सिकेन सादा, प्रमोद सादा, अशोक सादा,शिबू सादा,भागवत सादा, गुणेश्वर सादा, राजकुमार सादा सहित अन्य लोगों का सराहनीय योगदान रहा है।
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