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वृक्ष मानव सुरेश शर्मा द्वारा भीम सखुवा बचाने की मुहिम रंग लाने लगी, किया गया वैज्ञानिक परीक्षण

  • देश विदेश के कई पर्यावरणविद भीम सखुवा को बचना के लिए मौन सत्याग्रह का बना रहे हैं मन

बारा (नेपाल)। बारा जिले के जंगल में साढ़े 15 फिट मोटाई के वर्षों पुराने भीम सखुवा वृक्ष को काठमांडू निजगढ फास्ट ट्रैक मार्ग के लिए बनने वाले टोल ब्रिज को लेकर भीम सखुवा को काटने का निर्णय किया गया था। इस मुद्दे को  लेकर वृक्ष मानव के नाम से चर्चित पर्यावरणविद सुरेश शर्मा द्वारा इसके संरक्षण के लिए एक मुहिम चलाई गई थी जो कुछ ही घंटो मे राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय मीडिया में चर्चा का विषय बन गया था। 

भीम सखुवा के साथ सुरेश शर्मा


इस मुहिम पर नेपाल सरकार द्वारा काठमांडू स्थित वन अनुसन्धान तथा प्रशिक्षण केन्द्र से प्रतीक पाण्डे के नेतृत्व में एक टीम को परीक्षण के लिए भेजा गया, जहाँ डिवीजनल वन कार्यालय बारा के सहयोग से भीम सखुवा वृक्ष की अवस्था को लेकर टोमोग्राफी मशीन से वैज्ञानिक परीक्षण किया गया। परीक्षण का विस्तृत रिपोर्ट आना अभी बांकी है।

बताते चलें कि भीम सखुवा को बचाने के लिए नेपाल ही नही भारत के भी कई पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में काम कर रहे पर्यावरण विद द्वारा मुहिम चलायी जा रही है और आवाज उठायी जा रही है। भारत में पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में कार्य कर रही कई संस्थाओं द्वारा इस मुद्दे को लेकर भीम सखुवा के सामने मौन सत्याग्रह करने तक की बात हो रही है।

जांच करते वन अनुसंधान केंद्र के अधिकारी

असम से आने वाले हाथियों का है पद मार्ग क्षेत्र

अगर उत्तर बंगाल व अररिया जिले व पश्चिमांचल से सटे जिले के परिदृश्य में देखा जाए तो इन जिले के ज्यादातर भाग जंगलों से घिरे हुए हैं। पूर्व में भारत नेपाल सीमा पर मेची नदी है तो पश्चिम मे बारा जिले में निजगढ जंगल बहुल क्षेत्र से गुजरी है। लेकिन विकास के नाम पर जंगल की कटाई होने से जंगल का कई भागों में विभाजन हो गया। 

सुरेश शर्मा बताते है कि जंगलों के अतिक्रमण से प्रभावित तो सभी तरह के जानवर हुए, लेकिन सबसे ज्यादा प्रभावित कोई जानवर हुआ, तो वह है हाथी। ऐसे अन्य जंगली जानवरों की जान भी आफत में है। उन्होंने कहा कि हाथी टेरिटोरियल एनिमल की श्रेणी में नहीं, बल्कि माइग्रेटियर श्रेणी में आते हैं। यानी हाथियों को एक सीमित दायरे में घेर कर नहीं रखा जा सकता है। यह जंगल का पूरा इलाका हाथी सहित अन्य जंगली जानवरों का सुरक्षित स्थल है। 




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