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एसएसबी 45वीं वाहिनी मुख्यालय में 1.5 एकड़ भू-भाग में विकसित किया जा रहा मियावकी वन क्षेत्र



सुपौल। पौधरोपण के सबसे सामान्य उद्देश्यों में से एक, वनों को बढ़ावा देना है। पृथ्वी पर संतुलन बनाए रखने के लिए वन अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह वन जीवन प्रदान करने वाली शुद्ध ऑक्सीजन प्रदान करते हैं जिसके बिना मानव जाति का अस्तित्व असंभव है। एसएसबी 45वीं वाहिनी मुख्यालय में स्थित “मियावाकी वन” क्षेत्र में पौधरोपण किया गया।

 45वीं वाहिनी के कमांडेंट गौरव सिंह ने बताया की वाहिनी मुख्यालय के लगभग 1.5 एकड़ भूभाग मे मियावकी वन क्षेत्र विकसित किया जा रहा है जिसमें हम लगातार पौधरोपण करते रहते है। “मियावाकी जंगल/वन क्षेत्र” एक ख़ास तरह का जंगल होता है जिसकी खोज जापान के बॉटेनिस्ट अकीरा मियावाकी ने की थी। इस जंगल को विशेष तरीके से उगाया जाता है ताकि इन्हें लंबे समय तक हरा-भरा रखा जा सके।

 मियावाकी जंगल की खासियत है कि  यह कम समय में अधिक हरियाली फ़ैलाते हैं और साथ ही इनसे निकलने वाली ऑक्सीजन की मात्रा भी अधिक होती है। मियावाकी जंगल की तकनीक से केवल 02-03 वर्षों में ही एक घना जंगल प्राप्त किया जा सकता है। जबकि सामान्य तौर पर एक घना जंगल तैयार करने के लिए 20-30 साल का समय लगता है। मियावाकी तकनीक से उगाये जाने वाले पौधों के लिए सबसे उत्तम समय मानसून का होता है क्योंकि बारिश के पानी में यह पौधे आसानी से अपनी जड़ें विकसित कर लेते हैं और फिर इन्हें अधिक देखभाल की भी आवश्यकता नहीं पड़ती।

 इसे प्रकृति की माया या लीला चाहे कुछ भी कह लीजिये, नवोद्भिद पौधो को लगाने के थोड़े देर बाद आसमानी बारिश ने अपनी मेहरबानी दिखाते हुए इन पौधो में पानी की खुशनुमा बौछार कर पौधरोपण के इस कार्यक्रम को मजबूती प्रदान करते हुए इसे सफल बनाया।

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