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तीन किमी के दायरे में पूर्व से थे 07 नर्सिंग होम, कार्रवाई हेतु निर्देश के बाद दो और खुले, अब एक अन्य के ओपनिंग की चल रही तैयारी


  • 13 मई व 16 जून 2022 को निजी स्वास्थ्य संस्थानों की जांच कर कार्रवाई का सीएस कार्यालय ने दिया निर्देश, नतीजा सिफर
  • बिना ब्लड बैंक के हो रहा ऑपरेशन, मरीजों के बिस्तर पर चादर तक नहीं, सोशल मीडिया पर कर रहे सुपर स्पेशियलिटी का दावा
  • बोर्ड पर अंकित रहते हैं बड़े-बड़े डिग्रीधारी चिकित्सकों के नाम, उपचार से लेकर ऑपरेशन तक निपटाते हैं गैर डिग्रीधारी 

मुख्य सड़क में विद्युत खंभे से टंगा नए नर्सिंग होम का ओपनिंग बोर्ड।


छातापुर (सुपौल)। प्रखंड मुख्यालय के तीन किमी की परिधि में नर्सिंग होम, क्लीनिक, पैथोलॉजी व अल्ट्रासाउंड सेंटर की भरमार है और दिनानुदिन ऐसे संस्थानों में वृद्धि ही दर्ज की जा रही है। बावजूद विभाग निजी अवैध स्वास्थ्य संस्थानों को ले कागजी घोड़े तो दौड़ा रही है, लेकिन कार्रवाई एक पर भी नहीं हो रही। लिहाजा कई अवैध स्वास्थ्य संस्थान उपचार के नाम पर मरीजों का दोहन कर रहे हैं और गाहे-बगाहे मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ भी कर रहे हैं। हालात पर गौर करें तो छातापुर जैसे छोटे से कस्बाई क्षेत्र में सात नर्सिंग होम पहले से मौजूद थे। विभागीय कार्रवाई को लेकर सीएस कार्यालय द्वारा अनुमंडलीय उपाधीक्षक व पीएचसी प्रभारियों से पत्राचार के बाद दो और खुले और अब एक अन्य की भी ओपनिंग की तैयारी जोर शोर से चल रही है। आखिरकार एक तरफ जहां अवैध स्वास्थ्य संस्थानों की जांच व कार्रवाई को लेकर सीएस कार्यालय से पत्राचार किया जा रहा है। वहीं दूसरी ओर ऐसे संस्थानों को ओपनिंग की हरी झंडी कहां से मिल रही है! यह विचारनीय है। जब संस्थानों की शुरुआत होती है तो जिला मुख्यालय तक के विभागीय दिग्गज छातापुर पहुंच ओपनिंग की फीता काट जाते हैं और 10-20 अपने लोगों को खड़ा कर तालियां भी बजवा लेते हैं। और फिर शुरु हो जाता है सर्जरी व शोषण का खेल। हालात पर गौर करें तो संचालित अधिकांश नर्सिंग होम में बिना ब्लड बैंक की व्यवस्था के धड़ल्ले से शल्य क्रिया किया जा रहा है और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सुपर स्पेशियलिटी का दावा हवाओं में रेंग रहा है। जबकि हकीकत इतना विभत्स है कि ऐसे कई नर्सिग होम में मरीजों को बिस्तर पर चादर तक मयस्सर नहीं हो रहा। ऑपरेशन थियेटरों की स्थिति बदबूदार होती है तो मरीजों के वार्ड की दीवारें पान व गुटखों के धब्बे से रंगे होते हैं। 

नर्सिंग होम के भीतर ही लैब और दवाओं की रहती है व्यवस्था, बाहर से लाने पर हो जाता है अस्वीकार्य, सुननी पड़ती है कर्मियों की झिड़की

 कार्रवाई के लिए सीएस कार्यालय से भेजा गया पत्र।

प्रखंड में संचालित नर्सिंग होम की हालत दयनीय बनी हुई है। ऐसे अधिकांश संस्थानों के भीतर ही जांच घर व दवा के काउंटर बने हैं। भर्ती मरीजों को जांच भी यहीं से और दवा भी यहीं से खरीदने की बाध्यता होती है। यदि कहीं भूलवश बाहर से जांच करा आए और दवा खरीद लाई तो इसे अस्वीकार्य माना जाता है तथा संबंधित नर्सिंग होम के कर्मियों की झिड़की भी सुननी पड़ती है। सबसे अहम बात यह कि बोर्ड पर तो बड़े-बड़े डिग्रीधारी चिकित्सकों के नाम अंकित होते हैं, लेकिन हकीकत में इनका कहीं अता पता नहीं होता और गैर डिग्रीधारी हाथ के सफाई वाले तथाकथित चिकित्सक ऑपरेशन से लेकर उपचार तक के कार्य को अंजाम देते हैं। जानकारों की मानें तो संपूर्ण जिले में ऐसे संस्थानों का बड़ा नेटवर्क है जो आसानी से विभाग को पटाने में माहिर माने जाते हैं। वैध-अवैध की बातें जब चर्चा में आती है तो वरीय अधिकारियों को अंधेरे में रखने के लिए पत्राचार का सहारा लिया जाता है, जिसका नतीजा शून्य ही रहता है। ज्यादा जोर आजमाईश हुई तो कुर्सी बचाने के लिए एकाध को बलि का बकरा बनाकर कर्तव्य की इतिश्री कर ली जाती है।

मई व जून माह में सीएस कार्यालय ने पत्राचार कर सीधी कार्रवाई के लिए कहा, पर नतीजा अब तक शून्य

हालात पर गौर करें तो 13 मई 2022 को ऐसे स्वास्थ्य संस्थानों की जांच कर अवैध पाए जाने वालों के विरुद्ध कार्रवाई का निर्देश जारी हुआ था। इस आदेश के हासिए पर चले जाने के बाद 16 जून 2022 को विभाग ने पुन: स्मारित कराते हुए जांचोपरांत सीधी कार्रवाई का आदेश दिया। जिसमें एक्ट का हवाला देते हुए जांच के लिए स्थानीय प्रशासन की मदद लेने व अवैध संस्थानों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज कराने तक का निर्देश दिया गया था। बावजूद न तो जांच हुई और ना ही वैध-अवैध से पर्दा ही उठ पाया। मामले में पीएचसी प्रभारी डॉ शंकर कुमार से पूछने पर उन्होंने बताया कि निजी स्वास्थ्य संस्थानों की सूची कार्रवाई हेतु जिला भेज दी गई है। सवाल अहम हैं, जब सीएस कार्यालय से जांचोपरांत सीधी कार्रवाई का निर्देश प्राप्त था तो सूची भेजने की कवायद क्योंकर हुई! इससे स्पष्ट होता है कि कहीं न कहीं कार्रवाई के नाम पर स्थानीय प्रबंधन कागजी फंडा अपना रहा है और अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ कार्रवाई की गेंद उपर वालों की हद में डाल रहा है।


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