सुपौल। कलश स्थापन के साथ ही माता दुर्गा की पूजा-अर्चना रविवार से प्रारंभ हो जायेगी। नवरात्र के प्रथम दिन 15 अक्टूबर को माता शैलपुत्री की पूजा-अर्चना की जायेगी। जिसे लेकर श्रद्धालुओं में काफी उत्साह और उल्लास का माहौल व्याप्त है। हिंदूओं के महापर्व दशहारा को लेकर मुख्यालय स्थित बाजारों में काफी चहल पहल देखी गयी। शारदीय नवरात्र को लेकर शहर के विभिन्न चौक-चौराहों पर सैकड़ों की संख्या में पूजन सामग्री की दुकान सज गई है। जहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पूजन सामग्री की खरीददारी करने में जुट गए हैं। नवरात्र को लेकर शहर का माहौल भक्तिमय बना हुआ है। शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में दुर्गा पूजा के अवसर पर लगने वाले मेले की भी पूजा समितियों द्वारा तैयारी की जा रही है। वहीं पूजा पांडालों को आकर्षक रूप से सजाया जा रहा है। जहां माता की प्रतिमा स्थापित कर उनके सभी 09 स्वरूपों की नौ दिनों तक पूरी आस्था और श्रद्धा के साथ पूजा-आराधना की जायेगी।
सुपौल जिला मुख्यालय स्थित बड़ी दुर्गा स्थान, माल गोदाम एवं गांधी मैदान में मुख्य रूप से दुर्गा पूजा का भव्य आयोजन किया जाता है। इसके अलावा हजारों श्रद्धालुओं द्वारा दशहारा के अवसर पर घरों में भी कलश की स्थापना कर नौ दिनों तक माता की पूजा की जाती है। इस दौरान श्रद्धालुओं द्वारा व्रत व उपवास भी रखा जाता है। पूजा को लेकर शहर में चहल पहल बढ़ गई है।
मां आदिशक्ति दुर्गा की उपासना के लिए वर्ष पर्यन्त चार नवरात्रि मनाई जाती है। इस बार आगामी नवरात्रि शारदीय होगी, जो आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तिथि तक मनाई जाएगी। इसे आश्विन नवरात्रि में कहा जाता है।भगवती दुर्गा की आराधना करने के लिए यह नवरात्रि सभी के सरल होती है। इस बार शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 15 अक्टूबर 2023 से होकर 24 अक्टूबर विजयादशमी के दिन होगा। माता की आगमन और गमन का शास्त्रानुसार मंथन करते हुए सदर प्रखंड सुखपुर निवासी विष्णु झा ने बताया कि इस बार के आश्विन नवरात्रि में माता का आगमन हाथी पर होने जा रहा है जो कि एक शुभ संकेत है।
राघोपुर प्रखंड के गौसपुर निवासी आचार्य धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने बताया कि रविवार को कलश स्थापन का शुभ मुहूर्त प्रातःकाल सूर्योदय से लेकर 10 बजे तक अति शुभ है। दूसरा मुहूर्त कलश स्थापन का 01 बजे से 05 बजे तक है। सभी माता के भक्तों को प्रातः काल में ही कलश स्थापन कर लेनी चाहिए। 20 अक्टूबर को गज पूजा एवं सायं काल में 03 बजे से लेकर सूर्यास्त तक में बेलनोती कर्म संपादन कर लेनी चाहिए। 21 अक्टूबर को पत्रिका प्रवेश एवं रात्रि में महा निशापूजा होगी। 22 अक्टूबर को महाअष्टमी व्रत एवं पूजा के साथ-साथ दीक्षा ग्रहणम कर्म होंगे। 23 अक्टूबर को महानवमी व्रत, पूजा, त्रिशुलिनी पूजा, बलिदान आदि कर्म के साथ कुंवारी कन्या भोजन एवं हवनादि कर्म सम्पन्न होंगे। 24 अक्टूबर को अपराजिता पूजा, विजयादशमी, देवी विसर्जन, जयंती धारण तथा नवरात्रि व्रत का पारण होगा। जयंती काटने का शुभ मुहूर्त 24 अक्टूबर को प्रातः काल 08 बजे तक तथा दूसरा अर्धप्रहरा वर्जित कर यानि 09 बजकर 35 मिनट के बाद संपादन होगा।




कोई टिप्पणी नहीं