मुद्दे की बात करें तो छातापुर प्रखंड के अधिकांश दुकानों पर सरकार द्वारा निर्धारित मूल्य की दिनदहाड़े सरेआम धज्जियां उड़ाई जा रही है और स्थानीय कृषि कर्मी सूरदास बने मेहरबानी के बोझ तले दबे हैं। हालात कितना विकट है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 1350 का डीएपी 1700 रुपये प्रति पैकेट खुलेआम बेचा रहा है और 266.50 रुपए प्रति बैग का यूरिया का 350 से 400 तक दुकानदार वसूल रहे। नकली खाद बीज तो विश्वास की उधारी के मेहरबानी से दबा है। दुकानों में रखे उत्पादों की जांच नहीं होती और व्यवसायियों की मनमानी में किसानों ने इसे नियती मान लिया है। किसान सलाहकार नौकरी बचाने की जुगत में दुकानदारों से पंगा लेने से बचते रहते हैं तो समन्वयक की कहानी आवभगत पर आकर खत्म हो जाती है। उर्वरक निगरानी समिति की बैठक में बारंबार अधिक मूल्य वसूली की चर्चा जोरों पर रहती है। बावजूद किसानों के साथ हो रहे शोषण पर विभागीय चुप्पी समझ से परे है। ग्रामीण क्षेत्रों में शोषण की कहानी जगजाहिर होती रहती है। लेकिन जब प्रखंड मुख्यालय के चंद दुकानदार रसूख का दम दिखाने लगते हैं और इस रसूख में भोले भाले किसान पिसने लगते हैं तो बात चर्चा में आने लगती है। आखिर किस दम पर प्रखंड कृषि कार्यालय से किलोमीटर भर की दूरी पर संचालित दुकानों से मनमानी कीमत वसूली जा रही, यह समझने की बातें हैं। एक खुदरा विक्रेता ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर बताया कि जिस डीएपी को 1350 में बेचनी है उसे थोक विक्रेता 1550 में उपलब्ध करा रहे और 30 रुपये प्रति बैग किराया चुकाना पड़ता है। ऐसे में खुदरा विक्रेता भला क्या करें। बताया कि कागजों की कहानी दुरुस्त रहती है और फोन पर दर का निर्धारण होने के बाद ही माल उपलब्ध कराया जाता है।
छातापुर में चंद उर्वरक व्यवसायियों की मनमानी चरम पर, शोषण के शिकार हो रहे किसान
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