Page Nav

HIDE

Grid

GRID_STYLE

Classic Header

{fbt_classic_header}

Breaking News

latest

खुद का अस्पताल खोल कर रहे उपचार, दूसरे को रजिस्ट्रेशन बांट चलवा रहे निजी हास्पिटल

  • अधिकांश निजी अस्पतालों को क्लीनिक विथ बेड की अनुमति पर धड़ल्ले से की जा रही शल्यक्रिया, यूट्यूब चैनलों पर भी स्पेशियलिटी का दावा 

सुपौल। लगातार अदालती आदेश के बावजूद जिम्मेदार ही क्लीनिक स्टेब्लिशमेंट एक्ट की धज्जियां उड़ा रहे हैं। आदेश के आलोक में पत्राचार का दौर चलता है। लेकिन हकीकत से पर्दा उठाने में कोई दिलचस्पी नहीं लेता। नतीजा है कि एक डॉक्टर कई निजी अस्पतालों को अपना रजिस्ट्रेशन बांटकर हजारों-लाखों की कमाई कर रहे हैं और हाथ की सफाई वाले तथाकथित डॉक्टर उनके नाम पर मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। इसी तरह बिना‌ डिग्री की नर्सें ऐसे निजी अस्पतालों में लेडी डॉक्टर का तमगा लगाए बैठी हैं तो देख-देख कर जांच सीखने वाले पैथोलॉजी, लैब व अल्ट्रासाउंड चलाने वाले स्पेशलिस्ट बने हैं। कमोबेश एक्स-रे सेंटर चलाने वालों का भी यही हाल है। न डिग्रीधारी डॉक्टर का पता और ना एएनएम, जीएनएम का पता, बावजूद धड़ल्ले से शल्यक्रिया कर मरीजों को असामयिक मौत के मुंह में धकेला जा रहा है और जिम्मेदार की सीधी कार्रवाई पत्राचार तक सिमटी है। बानगी देखिए, छातापुर पुराने पेट्रोल पंप के समीप हर्ष हास्पिटल नामक निजी अस्पताल है जिसके चिकित्सक डॉ सर्वेश कुमार झा हैं। महोदय का यह खुद का निजी अस्पताल है जिसे पीएचसी प्रभारी द्वारा वैधता प्रमाणित करने के लिए पत्राचार किया जा चुका है। लेकिन श्रीमान अपना रजिस्ट्रेशन तीन किमी दूर संचालित निजी अस्पताल साईं हास्पिटल को देकर प्रमाणिकता प्रदान कर रहे हैं। लेकिन खुद के अस्पताल की प्रमाणिकता सिद्ध करने में पसीने छूट रहे हैं। 
जानकार बताते हैं कि महोदय का सात-आठ निजी अस्पतालों में रजिस्ट्रेशन रन कर रहा है और श्रीमान को इस जरिए से महीने में लाख रुपए का इनकम अलग से हो जा रहा है। सुनी-सुनाई बात सच्ची है या झूठी पता लगाना विभाग का काम है। पता लगाना इसलिए भी लाजमी है कि जिले में ही कई निजी अस्पतालों का संचालन इनके नाम पर होने की बातें सामने आ रही है। इसके अलावा जिले के बाहर भी इनके नाम के बोर्ड लगे होने की चर्चा है। लेकिन जब उनके रजिस्ट्रेशन पर संचालित निजी अस्पताल की चर्चा सरेआम होती है तो महाशय बिलबिला उठते हैं और धमकी पर उतारू हो जाते हैं। यह तो बानगी भर है, जिले की कई निजी अस्पतालों की यही कहानी है। नामी गिरामी चिकित्सक का बोर्ड लगाकर हाथ की सफाई वाले तथाकथित डॉक्टर मरीज व उनके परिजनों को असामयिक दर्द दे रहे हैं। लेकिन विडंबना देखिए, वर्षों से चल रहे उक्त गोरखधंधे पर अदालती आदेश के बावजूद विभाग लगाम नहीं लगा पा रहा है। चर्चा जब सरेआम होने लगती है तो पत्राचार होता है, छापेमारी व जांच के लिए धावा दल गठित होते हैं, लेकिन नतीजा फिर भी सिफर ही रहता है। जानकार बताते हैं कि किसी एक निजी अस्पताल में डॉक्टर स्थायी सेवा दे सकते हैं और उनके रजिस्ट्रेशन का उपयोग केवल एक ही अस्पताल में हो सकता है। इतना ही नहीं, अधिकांश निजी अस्पताल को क्लीनिक के साथ महज बेड की अनुमति प्रदान की गई है, जहां प्राथमिक उपचार के लिए बिस्तर का होना जरूरी है। बावजूद धड़ल्ले से शल्यक्रिया की जाती है और यूट्यूब चैनलों पर स्पेशियलिटी का दावा भी किया जाता है। लेकिन जिम्मेदार फिर भी आंखें मूंदे रहते हैं और लगातार विभागीय कृपा की छांव में गोरखधंधा परवान चढ़ता रहता है।


कोई टिप्पणी नहीं