सुपौल। पिपरा प्रखंड क्षेत्र अन्तर्गत पथरा उत्तर पंचायत स्थित वार्ड नंबर 05 महादलित टोला में दो दिवसीय लोक देवता दीना-भदरी मेला का आयोजन स्थानीय लोगों के द्वारा सार्वजनिक रूप से किया गया। मेला में 24 घंटे तक जिले के विभिन्न क्षेत्रों से आए कलाकारों द्वारा दीनाभद्री लोकगाथा का मंचन कर दर्शकों को लोक देवता दीना-भदरी को विस्तार से बताया। इस मेला को लेकर महादलित के लोग काफी खुश थे। बता दें कि मुसहर जाति के लोग वर्षों पूर्व से दीना-भदरी को लोक देवता के रूप में पूजते हैं। लोक कथा के अनुसार दीना-भदरी का जन्म नेपाल के सप्तरी जिला स्थित जोगिया गांव में कालु सादा और नीरसो के यहां हुआ था। दोनों भाई में दीना बड़े और भदरी छोटे थे वे दोनों बाल्यकाल से ही बीर और साहसी थे। दोनों भाई कुश्ती खेलने में माहिर थे। दीना भद्री की कथा विन्यास में वर्णित संघर्ष निश्चित रूप से समाज और इतिहास के यथार्थ के बुनियाद पर खड़ा दिखाई देता है। बिहार के सभी प्रचलित लोक गाथाओं की तरह दीनाभद्री दलितों के नायक कहे जाते हैं। जो अपने संघर्षशीलता के कारण खासकर मिथिलांचल के दलित जातियों में प्रचलित लोककथा अपनी जातीय और क्षेत्रीय सीमा से परे पूरे बिहार में सामान रूप से पसंद की जाती है। दीना भद्री हमेशा अन्याय के खिलाफ लड़ते रहे। समाज में हो रहे अत्याचार के खिलाफ लड़ाई लड़ते हुए बहुत सारे दानवों और राक्षसों का अंत किया। कहा जाता है कि दीना भद्री का बचपन का दोस्त दुसाध समुदाय के लोक देवता राजा सलहेस के हाथों दोनों भाई का अंत हो गया।
कथा के अनुसार देवी बछिया धामिन सुरमा सलहेस से धोखा में सत करवाया और दीना भद्री की हत्या करवा दी। वे दोनों भाई बड़े ही वीर बलवान थे। इसलिए उनके बताए मार्गो पर आज भी चलने के लिए लोगों के बीच वीर दीना-भदरी लोक गाथा का आयोजन किया जाता है। मेला आयोजन करने में राजेश सादा, मंगल सादा, बबलू सादा, योगानंद सादा, फुलेश्वर सादा, छट्ठू सादा, किशन सादा, बिपिन सादा, लक्ष्मी सादा, विद्यानंद सादा, वार्ड सदस्य प्रतिनिधि रंजीत साह, पूर्व उप मुखिया राजकुमार गिरी सहित अन्य लोगों का सराहनीय योगदान रहा है।
कोई टिप्पणी नहीं