- धार्मिक-सांस्कृतिक महत्व् में रुद्राक्ष एक विशिष्ट स्थान रखता है : सुरेश शर्मा
नेपाल। वन परियोजनामधेस प्रदेश के स्थलगत भ्रमण के क्रम में विश्व बैंक केन्द्रीय कार्यालय वाशिंगटन डीसी से आए उच्चस्तरीय भ्रमण दल को वृक्षमानव सुरेश शर्मा के द्वारा रुद्राक्ष का दो पौधा उपहार स्वरूप प्रदान कर गमला मेें पौधारोपण कराया गया। पर्यावरण अभियंता सुरेश शर्मा ने बताया कि कार्यालय वाशिंगटन डीसी से आए उच्चस्तरीय भ्रमण दल के द्वारा गमला मेें रोपे गए उक्त पौधे को उचित स्थान पर कुछ समय पश्चात् रोपण किया जायेगा। वही इस कार्य के लिए परियोजना संयोजक तथा प्रदेश वन निर्देशक सुनील कर्ण तथा सम्पूर्ण सहभागी सहयोगी पर्यावरण मित्र को धन्यवाद ज्ञापन किया। पर्यावरण अभियंता श्री शर्मा बताते हैं कि धार्मिक-सांस्कृतिक प्रतीकों में रुद्राक्ष एक विशिष्ट स्थान रखता है, जो इसकी धार्मिक एवं आध्यात्मिक आस्था का अभिन्न हिस्सा रहा है। इसका मुख्य कारण है रुद्र एवं अक्ष अर्थात भगवान शिव के आँसुओं के रूप में इसकी पहचान। माना जाता है कि जब भगवान शिव से आशीर्वाद प्राप्त त्रिपुरासुर सृष्टि के लिए खतरा बन गया तो उसका संहार करने के लिए शिव ने रौद्र रूप धारण किया और तब उनकी आंखों से निकले आंसू धरती पर गिरे तथा उन्होंने रुद्राक्ष का रूप धारण किया। अतः इसे भगवान शंकर के प्रतीक के रूप में माना जाता है। जिसे माला से लेकर कलावा, कवच, मुकुट और न जाने कितने रूपों में धारण किया जाता है।
शिव व शक्ति की उपासना में रुद्राक्ष का महत्व
हिंदू धर्म में विशेष रूप से शिव व शक्ति-उपासना में इसका विशेष महत्व रहता है व इसकी माला से जप किया जाता है। इसका पौधा प्रमुखतः हिमालयी क्षेत्रों में 6000 से 9000 फीट की ऊंचाइयों में पाया जाता है। नेपाल सहित भारत के उच्च क्षेत्रों में यह बहुतायत में पाया जाता है। भारत में रुद्राक्ष उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश, असम जैसे हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है, इसके अतिरिक्त दक्षिण भारत के मैसूर, नीलगिरी और कर्नाटक में भी रुद्राक्ष के पौधे मिलते हैं।
नेपाल में पाया जाता है सबसे बड़ा रुद्राक्ष
भारत के बाहर इंडोनेशिया, नेपाल और मलेशिया देश रुद्राक्ष के प्रमुख स्रोत हैं। नेपाल में पाया जाने वाला रुद्राक्ष आकार में अधिक बड़ा होता है, जबकि इंडोनेशिया व मलेशिया का रुद्राक्ष छोटा होता है। रुद्राक्ष मूलत: शीतल जलवायु का पौधा है, जो ठंडी जलवायु में अधिक बढ़ता है। अधिक तापमान वाली जगह में इसे छायादार जगह में उगाया जाता है। यह एक सदाबहार पेड़ है, जो तीव्रता से विकसित होता है। इसके पौधे में 3-4 वर्षों बाद फल आना प्रारंभ हो जाते हैं।
रुद्राक्ष को लेकर प्राचीन मान्यता
मान्यता है कि प्राचीनकाल में 108 मुखी वाले रुद्राक्ष होते थे, किंतु आज इसमें एक से 21 रेखाएँ अर्थात मुख पाए जाते हैं। नेपाल में 27 मुखी रुद्राक्ष तक मिला है। रुद्राक्ष का मापन मिलीमीटर में होता है। इंडोनेशिया में मिलने वाला रुद्राक्ष जहां 5 से 25 मिमी के बीच होता है, तो वहीं नेपाल में मिलने वाला रुद्राक्ष 20 से 35 मिमी का होता है। 14 मुखी रुद्राक्ष को सबसे शक्तिशाली रुद्राक्ष माना जाता है, जबकि एक मुखी को सबसे विरल, पावन तथा श्रेष्ठ माना जाता है।महाभागवत पुराण में भी रुद्राक्ष का जिक्र
महाभागवत पुराण में कहा गया है कि जिस घर में एकमुखी रुद्राक्ष रहता है, उस घर में माता लक्ष्मी वास करती हैं। 4, 5 और 6 मुखी रुद्राक्ष सबसे सामान्य हैं। पंचमुखी रुद्राक्ष जहाँ सबसे अधिक मिलते हैं व कम कीमत में उपलब्ध हो जाते हैं तो वहीं 1 मुखी, 14 मुखी व 21 मुखी रुद्राक्ष दुर्लभ रहते हैं तथा बेहद महंगे होते हैं।
औषधीय गुणों से भरपूर होता है रुद्राक्ष
रुद्राक्ष अपनी दिव्यता के साथ औषधीय गुणों से भी भरपूर है। इसकी माला को धारण करने से भूतबाधा व नकारात्मक विचार दूर होते हैं। इसकी माला गले में धारण करने से रक्त का दबाव अर्थात उच्च रक्तचाप नियंत्रित होता है। रुद्राक्ष से निकलने वाले तेल से दाद, एक्जिमा और मुंहासों से राहत मिलती है, ब्रोंकियल अस्थमा में भी आराम मिलता है।
दिल की बीमारी से बचाता है रुद्राक्ष
दिल की बीमारी व घबराहट में रुद्राक्ष एक प्रशांतक औषधि का काम करता है। इसके पत्तों में गुण पाए जाते हैं। इसलिए इसके पत्तों का लेप घाव के उपचार में किया जाता रहा है। आयुर्वेद में इसके औषधीय गुणों की चर्चा हुई है। इसके पत्तों से सिरदर्द, माइग्रेन, एपिलेप्सी तथा मानसिक रोगों का उपचार किया जाता है। फल के छिलके का उपयोग सर्दी, फ्लू और बुखार में किया जाता है। साथ ही इसके पत्तों व छिलकों का उपयोग रक्त के शोधन में भी किया जाता है। आयुर्वेद के ग्रंथों के अनुसार- रुद्राक्ष शरीर को सशक्त करता है, रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है, नैसर्गिक उपचारात्मक शक्तियों को जाग्रत करता है और समग्र स्वास्थ्य में योगदान देता है।
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