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भारत की राष्ट्रपति ने बिहार के अशोक कुमार विश्‍वास, सुरेंद्र किशोर और पंडित राम कुमार मल्लिक को नागरिक अलंकरण समारोह में पद्मश्री से किया सम्मानित

  • राष्ट्रपति ने श्री विश्‍वास और पंडित राम कुमार मल्लिक को कला और श्री किशोर को साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्मश्री से सम्मानित किया

पटना। भारत की राष्ट्रपति ने बिहार के अशोक कुमार विश्‍वास, सुरेंद्र किशोर और पंडित राम कुमार मल्लिक को 09 मई को नई दिल्ली में आयोजित नागरिक अलंकरण समारोह में पद्मश्री से सम्मानित किया। राष्ट्रपति ने अशोक कुमार विश्‍वास और पंडित राम कुमार मल्लिक को कला और सुरेंद्र किशोर को साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्मश्री से सम्मानित किया।

अशोक कुमार विश्‍वास


अशोक कुमार विश्‍वास 
जानकारी अनुसार अशोक कुमार विश्‍वास बिहार के एक संपन्न लोक कलाकार हैं, जिन्होंने बिहार के ग्रामीण और उप-शहरी क्षेत्रों की महिलाओं के उत्थान के लिए लोक चित्रकला के रूप में बदलाव लाते हुए और नि:शुल्क प्रशिक्षण प्रदान करते हुए मौर्य कालीन प्राचीन शिल्प टिकुली कला को पुनर्जीवित करने के लिए अपने जीवन के पांच दशक न्यौछावर किए हैं। 03 अक्टूबर 1956 को रोहतास बिहार में जन्मे श्री विश्‍वास को कम उम्र में ही गरीबी से जूझना पड़ा। साइन बोर्ड की एक दुकान में अपने बड़े भाई के साथ काम करते हुए उनका चित्रकला से परिचय हुआ। वर्ष 1973 में शिल्प अनुसंधान संस्थान पटना से कुशलतापूर्वक प्रशिक्षित होने के बाद, उन्होंने लुप्त हो चुकी टिकुली कला को शीर्ष तक पहुंचाने के लिए समर्पित रूप से स्वयं को प्रतिबद्ध किया। उनके संरक्षक, बिहार के दो प्रमुख कलाकारों उपेन्द्र महारथी (पद्म श्री विजेता) और लाई बाबू गुप्ता ने सदियों पुराने शिल्प कला के पुनरुद्धार के लिए उनका पथ-प्रदर्शन किया। जबकि इसकी उत्पत्ति जटिल 'बिंदी' से हुई है, जिसने सदियों से महिलाओं के माथे की शोभा बढ़ाई है, श्री विश्‍वास ने इसे बिहार की एक समृद्ध एवं परिष्कृत लोक चित्रकला में बदल दिया, जो महिला सशक्ति‍करण के एक महत्वपूर्ण प्रवर्तक के रूप में भी उभरी। उनके द्वारा लगभग 8000 महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया है, जिनमें से बहुसंख्य महिलाएं इस रचनात्मकता से अपनी आजीविका कमा रही हैं।

वर्ष 1982 के एशियाई खेलों में, भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने दुनिया भर से भाग लेने वाले सभी खिला‍ड़ि‍यों के लिए औपचारिक उपहार के रूप में विश्‍वास की टिकुली चित्रकला को चुना। उन्होंने पूरे भारत में 100 से अधिक प्रदर्शनियों में बिहार का प्रतिनिधित्व किया है और विभिन्न अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों में भारत का प्रतिनिधित्व भी किया है। उनके समर्पण के जरिये, टिकुली चित्रकला अब 'मेक इन इंडिया' अभियान और 'वन डिस्ट्रिक्ट, वन प्रोडक्ट' अभियान दोनों का हिस्सा बन गई है। उन्होंने गुरु शिष्य परम्परा योजना के अंतर्गत विशेष रूप से कई अतुल्य कार्यशालाएं आयोजित की हैं – जैसे कि अखिल भारतीय लोक कला कार्यशाला; बिहार की दृश्य कला, ईजेडसीसी-इन सभी का आयोजन संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के माध्यम से किया गया है। उन्‍होंने कौशल विकास मिशन, भारत सरकार के तहत; एमएसएमई मंत्रालय भारत सरकार द्वारा आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम; बिहार सरकार द्वारा आयोजित अन्य कार्यक्रम; और इसके अलावा स्कूलों, विश्वविद्यालयों और संगठनों में ज्यादा से ज्यादा लोगों को इस फलती-फूलती लोक कला से जोड़ने के लिए अनगिनत प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित किए हैं। उनकी टिकुली चित्रकला बिहार संग्रहालय, सचिवालय, मुख्यमंत्री कार्यालय, ईजेडसीसी मुख्यालय, स्कृति मंत्रालय, भारत सरकार मुख्यालय और अन्य प्रतिष्ठित कार्यालयों और अलंकृत भवनों की दीवारों की शोभा बढ़ा रही हैं ।
श्री विश्‍वास को लोक कला के प्रति उनके असाधारण योगदान के लिए कई संगठनों द्वारा पुरस्‍कार किया गया है। उन्हें वर्ष 2008 में बिहार सरकार द्वारा राज्य पुरस्कार वर्ष 2009 में भारत सरकार द्वारा कला श्री पुरस्कार; वर्ष 2020 में आईएचजीएफ दिल्ली मेले में स्वर्ण पदक; संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार और बिहार के राज्यपालों द्वारा सम्मान; 9वें सार्क मेले में भूटान की शाही सरकार द्वारा प्रशंसा पुरस्कार; और कई अन्य प्रतिष्ठित पुरस्कार और सम्मान प्रदान किए गए।
 


सुरेंद्र किशोर
सुरेंद्र किशोर 
सुरेंद्र किशोर बिहार के प्रसिद्ध पत्रकार हैं। 02 जनवरी 1947 को बिहार के सारण जिले के भराहापुर गांव के एक किसान परिवार में जन्मे श्री किशोर ने इतिहास में बीए ऑनर्स की डिग्री प्राप्त की। प्रतिभाशाली छात्र होने के बावजूद वह सरकारी नौकरी में नहीं गए, बल्कि उन्होंने एक राजनीतिक कार्यकर्ता और बाद में एक पत्रकार के रूप में काम किया। श्री किशोर पिछले पांच दशकों से पत्रकारिता कर रहे हैं। फ्रीलांसर के रूप में काम करने के बाद उन्होंने 1977 में मुख्यधारा की पत्रकारिता में प्रवेश किया। उन्होंने दैनिक आज (1977-83), जनसत्ता (1983-2001), दैनिक हिंदुस्‍तान (2001-2007), और दैनिक भास्कर ( 2013-16) जैसे प्रमुख अखबारों में लगातार महत्‍वपूर्ण पद संभाले। इसके अलावा, उन्होंने विभिन्न पत्रिकाओं और समाचार पत्रों जैसे धर्मयुग, दिनमान, रविवार और अन्य के लिए लिखना जारी रखा। आज भी वह देश के प्रमुख अखबारों और वेबसाइटों के लिए काम करते रहते हैं। उनकी लगन, मेहनत और ईमानदारी के कारण देश के प्रमुख अखबारों के संपादक श्री सुरेंद्र किशोर को अपने साथ जोड़ना चाहते थे। अपने पत्रकारिता करियर के दौरान उन्होंने कई खबरें ब्रेक की हैं। उनकी रिपोर्टों पर अक्सर बिहार विधानसभा और भारतीय संसद में चर्चा होती थी। उन्होंने महत्वपूर्ण मुद्दों पर जयप्रकाश नारायण का साक्षात्कार लिया था।
श्री किशोर ने कई राजनीतिक आंदोलनों में भाग लिया। 1969 में एक जन आंदोलन के दौरान नई दिल्ली में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और उन्होंने तिहाड़ जेल में कुछ समय बिताया। उन्होंने और उनकी पत्‍नी ने जेपी आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। आपातकाल के दौरान वह जॉर्ज फर्नांडिस के साथ बिहार समेत पूरे देश में सक्रिय थे।
श्री किशोर का समृद्ध निजी पुस्तकालय और संदर्भ संग्रह बिहार के बाहर से भी लोगों को आकर्षित करता है और वे पुस्तकालय से परामर्श लेने आते हैं। डॉ नामवर सिंह और जनसत्ता के संपादक प्रभाष जोशी भी सुरेंद्र जी की निजी लाइब्रेरी देखने आए। देश के कई प्रमुख अखबारों के संपादक रहे शंभूनाथ शुक्ल ने पिछले साल अप्रैल में अपने फेसबुक वॉल पर देश के उन शीर्ष दस पत्रकारों के बारे में लिखा था जिनसे उन्होंने बहुत कुछ सीखा है, और श्री किशोर उनमें से एक थे। राज्यसभा के उपसभापति श्री हरिवंश, जो स्वयं एक प्रसिद्ध पत्रकार हैं, ने लिखा कि श्री किशोर का सम्मान करना हिंदी पत्रकारिता की लुप्त हो रही गौरवशाली परंपरा का सम्मान करने जैसा है। उन्होंने उन्हें चलता-फिरता और बोलता विश्वकोश बताया।
श्री किशोर अपनी विनम्रता, गांधीवादी सादगी और ईमानदारी के लिए जाने जाते हैं। उन्हें एक संत पत्रकार माना जाता है। उन्होंने कभी किसी सिफारिश का सहारा नहीं लिया और कई स्थानीय व क्षेत्रीय पुरस्कार लेने से भी इंकार कर दिया। 



पंडित राम कुमार मल्लिक
पंडित राम कुमार मल्लिक
पंडित राम कुमार मल्लिक 500 वर्षों से चली आ रही दरभंगा की ध्रुपद परंपरा के सबसे पुराने संगीतकारों में से एक कलाकार हैं। 10 फरवरी 1957 को जन्मे पंडित मल्लिक दरभंगा घराने (मल्लिक घराना) के विख्यात संगीत परिवार से हैं और इस संगीत वंश की बारहवीं पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं। ध्रुपद संगीत में उनका प्रशिक्षण बहुत छोटी सी उम्र में उनके पिता स्वर्गीय पंडित विदुर मल्लिक और दादा प्रसिद्ध ध्रुपद गायक, स्वर्गीय पंडित सुखदेव मल्लिक के मार्गदर्शन में शुरू हुआ। उनका गायन अद्वितीय,रचनाओं का समृद्ध भंडार है और इसे लयकारियों एवं ति‍हा‍इयों की विविधता के अतिरिक्‍त गौरहरवाणी तथा खंडारवाणी के लिए जाना जाता है। उन्हें ध्रुपद संगीत ही नहीं बल्कि ख्याल, ठुमरी, दादरा, विद्यापति गीत के साथ - साथ भजन में भी महारत हासिल है। पंडित मल्लिक ने अपने पिता और गुरु के नाम पर एक संगठन की स्थापना की, ताकि ध्रुपद संगीत को संरक्षित किया जा सके और इस शैली का प्रचार-प्रसार हो सके। ध्रुपद संगीत से नई पीढ़ी को अवगत कराने के लिए दरभंगा (बिहार) में प्रत्येक वर्ष एक भव्य संगीत समारोह का भी आयोजन किया जाता है। इसके अलावा, पंडित राम कुमार मल्लिक द्वारा पंडित विदुर मलिक ध्रुपद संगीत गुरुकुल, दरभंगा (बिहार) में निःशुल्क ध्रुपद प्रशिक्षण भी प्रदान किया जा रहा है।
पंडित मल्लिक ऑल इंडिया रेडियो (आकाशवाणी) और दूरदर्शन के नियमित प्रसारणकर्ता हैं और ध्रुपद में आकाशवाणी और टीवी के एक प्रसिद्ध 'ए' ग्रेड कलाकार हैं। वह भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) से जुड़े एक सूचीबद्ध कलाकार हैं। उनका संगीत सीडी पर रिलीज़ किया गया है जैसे जर्मनी में जारी फास्ट साइड ऑफ ध्रुपद म्यूजिक कलेक्शन; बर्लिन (जर्मनी) में जारी दरभंगा ध्रुपद कलेक्शन; बर्लिन (जर्मनी) में रिलीज़ ध्रुपद ऑफ दरभंगा और बिहान म्यूज़िक, कोलकाता द्वारा कलावंत ऑफ दरभंगा ट्रेडिशन । उन्होंने भारत और विदेशों अर्थात बर्लिन, एम्स्टर्डम, पेरिस, जेनेवा, लंदन, नीदरलैंड, यूनिवर्सिटी म्यूजिक कॉन्सर्ट कैम्ब्रिज (इंग्लैंड), नेहरू सेंटर कॉन्सर्ट लंदन (यूके), न्यू जैज फेस्टिवल मोर्स (जर्मनी) बीबीसी प्रोमोस कॉन्सर्ट रॉयल अल्बर्ट हॉल लंदन(यूके),पलाज्जो अनमोनिकी कॉन्सर्ट लोको (स्विट्जरलैंड), फ्रांस, अमेरिका, आईसीसीआर प्रोग्राम- बॉन (जर्मनी),दरबार म्यूजिक फेस्टिवल लंदन (यूके) और ऐसे कई अन्य प्रतिष्ठित संगीत समारोहों में भाग लिया है । भारत के बाहर उनके संगीत कार्यक्रमों को रेडियो ब्रेमेन (बीआर), रेडियो फ्रैंकफर्ट (एचआर), रेडियो बेल्जियम (बीआरजे), बीबीसी लंदन द्वारा रिकॉर्ड किया गया है। 
पंडित मल्लिक को कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं। वर्ष 1985 में वह राष्ट्रीय युवा उत्सव में प्रथम स्थान पर रहे और उन्हें भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री ज्ञानी जैल सिंह द्वारा सम्मानित किया गया । उन्हें अंतर्राष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन, नई दिल्ली में विद्यापति सेवा संस्थान, दरभंगा द्वारा "मिथिला रत्न" की उपाधि से सम्मानित किया गया था। उन्हें पूर्वी क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र (ईजेडसीसी), कोलकाता द्वारा "ध्रुपद गुरु" चुना गया था। उन्हें "39वें अखिल भारतीय ध्रुपद मेला वाराणसी (2014) में "स्वाति तिरुनल पुरस्कार", "युवा, कला एवं संस्कृति विभाग,पटना (बिहार) द्वारा साधना सम्मान, वर्ष 2017 में "पद्म श्री पंडित शिवराम पद्मरी वम्हता कलाकर पुरस्कार" से भी सम्मानित किया गया था।

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