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जब तक विद्यालय की जमीन से पेड़ हटे नहीं भूमि को बताया गया विवादित, वृक्ष कटते ही बनने लगा भवन

• प्राथमिक विद्यालय कलानंद साह टोला का मामला, परोक्ष रूप से भूदाता के वंशज बने हैं ठेकेदार



सुपौल। छातापुर प्रखंड के प्राथमिक विद्यालय कलानंद साह टोला कटहरा के छात्रों को वर्षों बाद झोपड़ी की जगह भवन नसीब होने वाला‌ है। लेकिन सालों इंतजार के गुनहगार की तलाश होना बाकी है। फिलहाल विद्यालय की भूमि पर जिप संख्या 20 मद से तकरीबन 15 लाख की राशि से भवन निर्माणाधीन है। लेकिन यहां भी बिचौलिए की कुदृष्टि ने नौनिहालों के भविष्य को दांव पर लगा दिया है। 

भवन निर्माण के आरंभ से लोकल बालू का खपाने का खेल शुरू कर गुणवत्ता से खिलवाड़ किया जाता रहा। मामला प्रकाश में आने व विभागीय जेई द्वारा स्थलीय निरीक्षण के बाद कार्य स्थल से लोकल बालू तो हटा लिया गया है। लेकिन गुणवत्ता में सेंध लगाने पर विराम नहीं लगा है। 

जानकार बताते हैं कि वर्ष 2013 में विद्यालय को डेढ़ कट्ठा भूमि मिली और उक्त भूमि पर कई हरे भरे वृक्ष विद्यमान थे जिसकी छाया में बच्चे पढ़ाई करते थे। बच्चों की परेशानी को देखते हुए कई बार भवन निर्माण के प्रयास हुए। लेकिन जब भी भवन निर्माण का प्रयास होता तो भूदाता के वंशजों द्वारा विवाद उत्पन्न किया जाता रहा। इसके पीछे की मंशा विद्यालय की भूमि किनारे लगे मोटे-मोटे हरे भरे वृक्ष थे और भवन निर्माण की ठेकेदारी खुद के हाथ में होने की रही। 


मुखिया सहित विभाग ने जब भी भवन निर्माण की इच्छा जाहिर की तो बात निकलकर यही सामने आई कि विद्यालय को भूमि हमारे पूर्वजों ने दी है तो कोई दूसरा कैसे भवन बनाएगा! इसकी आड़ लेते हुए विद्यालय की भूमि को विवादित बताया जाता रहा। विभाग ने भी बच्चों की चिंता में शामिल होकर तकरीबन 12 लाख की राशि आवंटित की जिसे दो साल के इंतजार के बाद लौटानी पड़ गई। 

दो वर्ष पूर्व एक बार फिर निर्माण की सुगबुगाहट शुरू हुई तो भूदाता ने स्थल से मोटे-मोटे वृक्षों को काट लिया जिसे लकड़ी व्यापारी के हाथों हजारों में बेचने की चर्चा भी रही। जब तक दरख़्त खड़े थे तब तक भूमि को विवादित बताया जाता रहा। लेकिन दरख्तों के हटते ही उसी भूमि पर आज भवन की नींव खड़ी हो गई है। जब पेड़ कटे तो बच्चे छाया से भी महरूम हो गए। वैकल्पिक व्यवस्था के तहत झोपड़ी खड़ी कर छात्रों का पानी व धूप से बचाव किया गया। 

इधर, जिप मद से भवन निर्माण की मंजूरी मिलने व परोक्ष रूप से भूदाता के वंशज को ठेकेदार बना दिए जाने के बाद निर्माण की गति इतनी तेज रही कि फिलवक्त कुर्सी लेवल के ऊपर दीवार ऊंची हो रही है। आखिर इस विलंब के लिए जिम्मेदार कौन‌ था जिसने नौनिहालों को वर्षों तक झोपड़ी में पढ़ते रहने के लिए विवश किया! दूसरी ओर जब विभाग से लगभग 12 लाख की राशि आवंटित हुई तो निर्माण सामग्री का दर वर्तमान से काफी कम था। लेकिन अब जिप मद की प्राक्कलित राशि तकरीबन 15 लाख बताई जा रही है। मतलब साफ है कि समय पर यदि भवन निर्माण होने दिया जाता तो आज सरकारी राशि की भी बचत होती। 

गौर करनेवाली बात यह भी कि सिस्टम कितना मेहरबान है जो अब तक कार्य स्थल पर बोर्ड तक नहीं लगाया गया है जो आम आदमी योजना की जानकारी से अवगत भी हो सकें।



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