सुपौल। प्रतापगंज प्रखंड मुख्यालय स्थित एक निजी अस्पताल में शनिवार को इलाज के दौरान गोविंदपुर पंचायत निवासी राधा देवी (32 वर्ष), पति फूल कुमार शर्मा की मौत हो गई। मौत की खबर फैलते ही परिजनों और ग्रामीणों ने अस्पताल में जमकर हंगामा किया। हालांकि स्थानीय पुलिस के हस्तक्षेप से स्थिति को नियंत्रित किया गया।
मृतका के घर जैसे ही देर रात शव पहुंचा, परिजनों में कोहराम मच गया। राधा देवी अपने पीछे तीन छोटे-छोटे बच्चों को छोड़ गई हैं। रविवार सुबह से ही बड़ी संख्या में ग्रामीण और जनप्रतिनिधि उनके घर पहुंचकर शोक संतप्त परिवार को सांत्वना देते रहे।
मौत के बाद ग्रामीणों के बीच कई सवाल उठने लगे – आखिर कब तक ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर लोगों की जान जाती रहेगी? इस मौत का जिम्मेदार कौन है? कब तक बिना पंजीकरण के अस्पतालों का संचालन होता रहेगा?
जब संवाददाता ने इस निजी अस्पताल के बारे में पीएचसी प्रतापगंज की प्रखंड कार्यक्रम प्रबंधन इकाई से जानकारी ली तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। असैनिक शल्य चिकित्सक सह मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी सुपौल द्वारा दिनांक 12.11.2024 को पत्रांक 3049 के माध्यम से प्रखंड क्षेत्र में संचालित अस्पतालों और नर्सिंग होमों की जांच रिपोर्ट मांगी गई थी।
इसके जवाब में प्रखंड इकाई ने पत्रांक 354 दिनांक 24.12.2024 के तहत प्रतापगंज क्षेत्र के चिन्हित 12 निजी संस्थानों में से 11 को चेतावनी पत्र जारी किया था। इन पत्रों में स्पष्ट किया गया था कि क्लीनिकल एस्टैब्लिशमेंट एक्ट 2010 व 2013 के तहत निबंधन के बिना कोई भी निजी स्वास्थ्य संस्थान संचालित नहीं किया जा सकता। अन्यथा संबंधित थाना में प्राथमिकी दर्ज कर कार्रवाई की जाएगी।
हैरानी की बात यह है कि चेतावनी पत्र के बाद भी न कोई जांच हुई, न ही कोई कार्रवाई। नतीजतन, निजी अस्पताल संचालकों का मनोबल बढ़ता गया और व्यवस्थागत लापरवाही का खामियाजा आम ग्रामीणों को अपनी जान गंवाकर भुगतना पड़ रहा है। जांच की स्थिति अब "बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे" जैसी हो गई है।
ग्रामीणों ने मांग की है कि इस मामले में निष्पक्ष जांच कर दोषी अस्पताल और उसके संचालकों पर कठोर कार्रवाई की जाए, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
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